सत्ता के दलाल हो गये,
ईमानदारी और नैतिकता
दो शब्द हैं जो नारे बने
जिनको अपनी कलम से
जिंदगी देने का दावा करते थे झूठा
यह दोनों ही नये धंधे में हलाल हो गये।
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उधार के शब्दों ने
उनको कलम का धनी बना दिया,
जो सत्ता की गली में घुसे
उनकी छवि को
दलाली की वसूली ने
उनकी छवि को कीचड़ में सना दिया।
शब्द तो एक छलावा था उनके
जिसके सहारे चढ़ना था सीढ़ियां,
हम तो समझे थे कि
इतिहास में उनके शब्दों की
शामिल होंगी कई पीढ़ियां,
क्या मालुम था वह कर रहे हैं छलावा,
उनको रचनाकार मानने पर होगा पछतावा,
अपनी नीयत में दलाली के धंधे को
उन्होंने अपनी मंज़िल बना लिया।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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