हर तरफ घूम रहे
हाथ में खंजर लिये लोग
किसी से हमदर्दी का उम्मीद करना
बेकार है
पहले कोई किसी के पीठ में
घौंपकर आयेगा,
फिर अपनी पीठ को बचायेगा।
भला कब किसी को
दर्द सहलाने का समय मिल पायेगा।
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दौलत, शौहरत और ताकत के
घोड़े पर सवार लोग
गिरोहबंद हो गये हैं।
हवा के एक झौंके से
सब कुछ छिन जाने का खौफ
उनके दिल में इस कदर है कि
आंखों से हमेशा उनके खून टपकता है,
आम आदमी की पीठ पर
हर पल बरसा रहे चाबुक
फिर भी वह कांटे की तरह
आंखों में खटकता है,
समाज की हालातों पर
सच लिखने वाले शब्द मंद हो गये हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
1 comment:
बहुत सुंदर…..
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