Thursday, April 23, 2009

रौशनी का वास्ता कब तक दिलाओगे-हिंदी शायरी (roshni ka vasata-hindi shayri)

तख्तियों पर लिखे शीर्षकों के तले
खड़े लोगों की भीड़ को
कब तक बहलाओगे।
इंसान की आदतों को
कब तक भीड़ में छिपाओगे।
टकराते हैं जब लोगों मे मतलब आपस में
तब जंग भी होती है
इंसान अपने लिये जागता है
पर भीड़ तो हमेशा सोती है
लोगों की भीड़ में ढूंढते हो
आदमी-औरत, गरीब-अमीर
और शोषक-शोषित
बांटकर उनको
तरक्की के रास्ते पहुंचाने का
दिखावा कब तब कर पाओगे।
बरसों से यही हाल है
जो आज दिख रहा है
जमाने ने देखा है तुम्हारा दौर भी
जब तुूम्हारे हाथ में था अलादीन का चिराग
तब भी तुमने कोई जादू नहीं किया
इस बात पर करना जरूरी है गौर भी
वादे करना और कसमें खाना
तुम्हारी पुरानी आदत है
पर जमाने को कब तक
खाली भरोसे पर बहलाओगे
अंधेरे में गुजारते हुए बरसों हो गये
खाली चिराग सजाकर
कब तब रौशनी का वास्ता दिलाओगे।

....................................

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2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना है।बधाई।

शब्दकार-डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

नमस्कार,
इसे आप हमारी टिप्पणी समझें या फिर स्वार्थ। यह एक रचनात्मक ब्लाग शब्दकार के लिए किया जा रहा प्रचार है। इस बहाने आपकी लेखन क्षमता से भी परिचित हो सके। हम आपसे आशा करते हैं कि आप इस बात को अन्यथा नहीं लेंगे कि हमने आपकी पोस्ट पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की।
आपसे अनुरोध है कि आप एक बार रचनात्मक ब्लाग शब्दकार को देखे। यदि आपको ऐसा लगे कि इस ब्लाग में अपनी रचनायें प्रकाशित कर सहयोग प्रदान करना चाहिए तो आप अवश्य ही रचनायें प्रेषित करें। आपके ऐसा करने से हमें असीम प्रसन्नता होगी तथा जो कदम अकेले उठाया है उसे आप सब लोगों का सहयोग मिलने से बल मिलेगा साथ ही हमें भी प्रोत्साहन प्राप्त होगा। रचनायें आप shabdkar@gmail.com पर भेजिएगा।
सहयोग करने के लिए अग्रिम आभार।
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
शब्दकार

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