Friday, April 10, 2009

जब तक अपनी नई सोच को खुद रौशन नहीं करोगे-हिन्दी शायरी

वहम और दिखावे से कैसे जंग लड़ोगे
इंसानी दिमाग की फितरत है
अच्छी हो या बुरी
किसी सोच की गुलामी करना
तुम खाली जुबां से कैसे जीतोगे
उस अंधेरे से
जब तक अल्फाजों की नई रौशनी नहीं भरोगे।

आदमी का दिल कितना भी दरिया हो
ख्यालों के दायरे उसके बहुत तंग हैं
चलते हैं उधार की सोच पर सभी
अपने अल्फाज़ नहीं तय करते वह कभी
दोस्त हो या दुश्मन
जो दिखाये सपने, होते उसी के संग हैं
रौशनी के चिराग बुझ जाते हैं
कितना भी बचो, अंधेरे फिर भी आते हैं
मंजिल का पता नहीं
रास्ते सभी भटके हैं
फिर भी उम्मीद पर
किताबी कीड़ों के घर पर लटके हैं
शायद वह कोई अल्फाज़ों से निकालकर
मंजिल का पता बता दे
कैसे बताओगे उनको
सही मंजिल और रास्ते का पता
जब तक तुम अपनी सोच को
खुद ही रौशन नहीं करोगे

................................
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1 comment:

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब। कहते हैं कि-

कबतक तकोगे आस सहारे की तुम मियाँ।
पहला कदम उठाओ लेकिन यकीन से।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

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