2.सच्चा ज्ञानी तो वही है जो प्रसंग के अनुसार वार्तालाप में अपने तर्क उचित ढंग से प्रस्तुत करता है। वह अनुकूल होने पर प्रेम करता है और अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध प्रदर्शन करने वाला भी होता है।
3.हृदय में रहने वाला दूर रहकर भी पास है और हृदय में न रहने वाला पास रहकर भी दूर रहता है। परे और निकट के संबंध का आधार हृदय के भाव से है।
4.जल में तेल पड़ते ही कम होने के बावजूद तेल का विस्तार हो जाता है। उसी तरह दुष्ट के साथ गोपनीय विषय पर की गयी वार्ता विद्युत गति से फैल जाती है। उसी तरह सुदान की चर्चा भी विस्तार पाती है। विस्तार की शक्ति अपने पात्र के कार्य करने पर निर्भर रहती है।
5.निर्धन को पत्नी, मित्र, सेवक, भाई और परिजन सब छोड़ देते हैं।
दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति
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