Tuesday, February 10, 2015

एक चेहरे के पीछे भीड़-हिन्दी कविता(ek chehare ke peechhe bheed-hindi poem)



एक चेहरा आगे

दिखता है

पीछे नरमुंडों की

भीड़ चली आती है।



एक चरित्र के पीछे छिपे

बहुत से लोगों की

नीयत की पहचान

भला किसे हो पाती है।



कहें दीपक बापू खूबसूरत मुखौटों पर

ज़माना फिदा हो जाता है,

सपनों की मस्ती में खो जाता है,

काले बाज़ार के सौदागर

अपने खेल के लिये

इंसानों के रूप में मुखौटे

बाज़ार में सजा लेते हैं

दिखते हैं वह लोगों के

भले करने के लिये तत्पर

यह अलग बात है

वफा आकाओं के पास

हमेशा गिरवी नज़र आती है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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