इस धरती पर भी बहुत सारे तारे चलते हैं,
जहां को रौशन करने वाले चिराग भी जलते हैं।
जिन्होंने अपने चेहरे सजाये सौंदर्य प्रसाधनों से
उम्र के साथ वह भी डूबते सूरज की तरह ढलते हैं,
लूट लिया पसीने से कमाया खजाना उन्होंने
मेहनतकशों की दरियादिली पर जो रोज पलते हैं।
कहें दीपक बापू उखड़ जाती है जिनकी जल्दी सासें
लोग उनके आसरे अपनी जिंदगी रखकर मचलते हैं।
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गद्दार बता रहे हैं वफा की पहचान,
लुटेरे पा रहे हैं इस जहां में सम्मान।
सौंदर्य सज गया है नकली सोने से
क्या करेंगे जौहरी, सच लेंगे जो जान,
कहें दीपक बापू, जहां में अक्ल चर रही घास
धोखे की पीछे सच सो रहा है चादर तान।
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जहां को रौशन करने वाले चिराग भी जलते हैं।
जिन्होंने अपने चेहरे सजाये सौंदर्य प्रसाधनों से
उम्र के साथ वह भी डूबते सूरज की तरह ढलते हैं,
लूट लिया पसीने से कमाया खजाना उन्होंने
मेहनतकशों की दरियादिली पर जो रोज पलते हैं।
कहें दीपक बापू उखड़ जाती है जिनकी जल्दी सासें
लोग उनके आसरे अपनी जिंदगी रखकर मचलते हैं।
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गद्दार बता रहे हैं वफा की पहचान,
लुटेरे पा रहे हैं इस जहां में सम्मान।
सौंदर्य सज गया है नकली सोने से
क्या करेंगे जौहरी, सच लेंगे जो जान,
कहें दीपक बापू, जहां में अक्ल चर रही घास
धोखे की पीछे सच सो रहा है चादर तान।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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