भ्रष्टाचार
जिंदगी का हिस्सा
बन गया है,
उठता दर्द
जब मौका न होता
अपने पास,
दुख यह है
कोई धनी होकर
तन गया है।
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गैरों ने लूटा
परवाह नहीं थी
गुलाम जो थे,
यह आजादी
अपनों ने पाई है
लूट वास्ते
नये कातिल
रचते इतिहास
हाथ खुले हैं,
कब्र में दर्ज
लगते है पुराने
यूं नाम जो थे।
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बन गया है,
उठता दर्द
जब मौका न होता
अपने पास,
दुख यह है
कोई धनी होकर
तन गया है।
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गैरों ने लूटा
परवाह नहीं थी
गुलाम जो थे,
यह आजादी
अपनों ने पाई है
लूट वास्ते
नये कातिल
रचते इतिहास
हाथ खुले हैं,
कब्र में दर्ज
लगते है पुराने
यूं नाम जो थे।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप"
poet,writter and editor-Deepak "BharatDeep"
http://rajlekh-hindi.blogspot.com
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