बाहर जलती रौशनी देखकर भी
कब तक खुश रहा जा सकता है
अंदर का अंधेरा कभी न कभी
बाहर आकर दर्द देता
खुशियों का बोझ भी कब तक सहा जा सकता है
....................................
अपनी आवाज बुलंद होने का गुमान
कुछ इस तरह है उनको कि
कहीं मशहूर हम भी न हो जायें
वह अपने लबों सें नाम लेते भी डरते हैं।
हम भी कहां चाहते हैं
रौशनी करने की कीमत
क्योंकि ठहरे वह चिराग जो
अपने तले अंधेरा रखते हैं।
----------------------------
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
---------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
-
*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
1 comment:
चिराग तले अंधेरा होता ही है !
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!
Post a Comment