Saturday, September 20, 2008

आज वह मजाक बनाएगा-हास्य व्यंग्य (hasya vyangya)

दीपक बापू बाहर जाने के लिये बाहर निकल रहे थे तो बा (गृहस्वामिनी) ने कहा-‘अभी बिजली नहीं आयी है इसलिये सर्वशक्तिमान के दरबार में दर्शन करने जा रहे हो नहीं तो अभी तक कंप्यूटर पर अपनी आखें झौंक रहे थे।’
दीपक बापू ने कहा-‘कैसी बात करती हो। लाईट चली गयी तो चली गयी। मैं तो पहले ही कंप्यूटर को पर्दा गिराने (शट डाउन) का संदेश भेज चुका था। अपने नियम का मैं पक्का हूं। सर्वशक्तिमान की कृपा है कि मैं ब्लाग लिख पा रहे हूं।
बा ने कहा-‘फंदेबाज बताता रहता है कि तुम्हारे हिट होने के लिये वह कई जगह मन्नतें मांगता है। तुम्हारे फ्लाप शो से वह भी दुःखी रहता है।
दीपक बापू ने कहा-‘तुम भी किसकी बात लेकर बैठ गयी। न वह पढ़ने में न लिखने में। आ जाता है फालतू की बातें करने। हमने कभी अपने फ्लाप रहने की परवाह नहीं की जो वह करता है। जिनके दोस्त ऐसे ही हों वह भला हिट ब्लागर बन भी कैसे सकता है।’

इतने में फंदेबाज ने दरवाजे पर दस्तक दी। दीपक बापू ने कहा-‘और लो नाम शैतान का। अच्छा खासा सर्वतशक्तिमान के दरबार में जा रहा था और यह आ गया मेरा समय खराब करने। साथ में किसी को लाया भी है।’
फंदेबाज उस आदमी को लेकर अंदर आया और बोला-‘दीपक बापू कहीं जा रहे थे क्या? लगता है घर में लाईट नहीं हैं वरना तुम इस तरह जाते नहीं।’
दीपक बापू ने कहा-‘ अब तुम कोई फालतू बात तो करना नहीं क्योंकि हमारे पास समय कम ही है। बताओ कैसे आये? आज हमारा हास्य कविता लिखने का कोई विचार नहीं है।’
फंदेबाज अपने साथ लाये आदमी की तरफ हाथ उठाते हुए बोला-‘ यह मेरा दोस्त टोपीबाज है। इसने कई धंधे किये पर हिट नहीं हो सका। आपको तो परवाह नहीं है कि हिट हैं कि फ्लाप पर हर आदमी फ्लाप होने का दर्द नहीं झेल सकता। इसे किसी तोते वाले ज्योतिषी ने बताया है कि टोपी के धंधे में इसे सफलता मिलेगी। इसलिये इसने झगड़ेबाज की जगह अपना नाम टोपीबाज कर लिया। यह धंधे के हिसाब से अपना नाम बदलता रहता है। यह बिचारा इतने धंधे कर चुका है कि अपना असली नाम तक भूल गया है। अब आप इसके धंधे का शुभारंभ करो। तोते वाले ज्योतिषी ने इसे बताया था कि किसी फ्लाप लेखक से ही उसका शुभारंभ करवाना। लोग उससे सहानुभूति रखते हैं इसलिये तुम्हें लाभ होगा।’

दीपक बापू ने उस टोपीबाज की तरफ दृष्टिपात किया और फिर अपनी टोपी पर दोनों हाथ लगाकर उसे घुमाया और हंसते हुए बोले-‘चलो! यह नेक काम तो हम कर ही देते हैं। वहां से कोई चार छहः टोपी खरीदनी है। इसकी दुकान से पहली टोपी हम खरीद लेंगे। वह भी नगद। वैसे तो हमने पिछली बार छहः टोपी बाजार से उधार खरीदी थी पर वह चुकायी नहीं। जब उस बाजार से निकलते हैं तो उस दुकान वाले रास्ते नहीं निकलते। कहीं उस दुकान वाले की नजर न पड़ जाये। अगर तुम्हारी दुकान वहीं है तो भैया हम फिर हम नहीं चलेंगे क्योंकि उस दुकानदार को देने के लिये हमारे पास पैसा नहीं है। वैसे सर्वशक्तिमान ने चाहा तो इसके यहां से टोपी खरीदी कहीं फलदायी हो गयी तो शायद कोई एकाध ब्लाग हिट हो जाये।
फंदेबाज बोला-‘अरे, तुम समझे नहीं। यह किसी टोपी बेचने की दुकान नहीं खोल रहा बल्कि यह तो ‘इसकी टोपी उसके सिर’ वाली लाईन में जा रहा है। हां, शुभारंभ आपसे करना चाहता है। आप इसे सौ रुपये दीजिये आपको अंतर्जाल का हिट लेखक बना देगा। इसके लिये वह घर पर बैठ कर अंग्रेजी का मंत्र जपेगा अब उसमें इसकी ऊर्जा तो खत्म होगी तो उसके लिये तो कुछ पैसा तो चाहिये न!
दीपक बापू ने कहा-‘कमबख्त, ऐसे व्यापार करने से तो न करना अच्छा। यह तो धोखा है, हम तो कभी हिट लेखक नहीं बन सकते। कहीं ठगीबाजी में यह पकड़ लिया गया तो हम भी धर जिये जायेंगे कि इसके धंधे का शुभारंभ हमने किया था।
फंदेबाज ने कहा-‘तुम्हें गलतफहमी हो गयी है कि इसे सौ रुपये देकर हिट लेखक बन जाओगे और यह कोई अंग्रेजी का मंत्र वंत्र नहीं जपने वाला। सौ रुपये नहीं यह तो करोड़ों के वारे न्यारे करने वाला है। यह तो आपसे शुरूआत है। इसलिये टोकन में सौ रुपये मांग रहा हूं। ऐसे धंधे में कोई पकड़ा गया है आजतक। मंत्र का जाप तो यह करेगा। कुछ के काम बनेंेगे कुछ के नहीं। जिनके बनेंगे वह इसका गुण गायेंगे और जिनके नहीं बनेंगे वह कौन शिकायत लेकर जायेंगे?’
दीपक बापू ने कहा-‘क्या तुमने हमें बेवकूफ समझ रखा है। ठगी के धंधे का शुभारंभ भी हम करें क्योंकि एक फ्लाप लेखक हैं।’
फंदेबाज ने कहा-‘तुम भी चिंता मत करो। कई जगह तुम्हारे हिट होने के लिये मन्नतें मांगी हैं। जब हिट हो जाओगे तो तुमसे किसी और बड़े धंधे का शुभारंभ करायेंगे।’
दीपक बापू ने आखें तरेर कर पूछा-‘तो क्या लूटपाट के किसी धंधे का शुभारंभ करवायेगा।’
बा ने बीच में दखल दिया और बोली-‘अब दे भी दो इस बिचारे को सौ रुपये। हो सकता है इसका ध्ंाधा चल निकले। कम से कम फंदेबाज की दोस्ती का तो ख्याल करो। हो सकता है अंग्रेजी के मंत्रजाप करने से आप कंप्यूटर पर लिखते हुए हिट हो जाओ।’
दीपक बापू ने सौ का नोट टोपीबाज की तरफ बढ़ा दिया तो वह हाथ जोड़ते हुए बोला-‘आपके लिये तो मैं सचमुच में अंग्रेजी में मंत्र का जाप करूंगा। आप देखना अब कैसे उसकी टोपी उसके सिर और इसकी टोपी उसके सिर पहनाने का काम शुरू करता हूं। घर घर जाकर अपने लिये ग्राहक तलाश करूंगा। कहीं न कहीं कोई समस्या तो होती है। सभी की समस्या सुनकर उनके लिये अंग्रेजी का मंत्र जपने का आश्वासन दूंगा जो अच्छी रकम देंगे उनके लिये वह जपूंगा और जो कम देंगे उनका फुरसत मे ही काम करूंगा।’
बा ने कहा-‘महाराज, आप हमारे इनके लिये तो आप जरूर अंग्रेजी का मंत्र जाप कर लेना। अगर हिट हो गये तो फिर आपकी और भी सेवा कर देंगे। आपका नाम अपने ब्लाग पर भी चापेंगे (छापेंगे)
अपना काम निकलते ही फंदेबाज बोला-‘अच्छा दीपक बापू चलता हूं। आज कोई हास्य कविता का मसाला मिला नहीं। यह दुःखी जीव मिल गया। अपने धंधे के लिये किसी फ्लाप लेखक की तलाश में था। यह पुराना मित्र है मैंने सोचा तुमसे मिलकर इसका काम करा दूं।’
दीपक बापू ने कहा-‘कमबख्त, इतने करोड़ो के बजट वाला काम शुरू किया है और दो लड्डे भी नहीं ले आये।’
फंदेबाज ने झुककर बापू के मूंह के पास अपना मूंह ले जाकर कहा-‘यह धंधा किस तरह है यह बताया था न! इसमेें लड्डू खाये जाते हैं खिलाये नहीं जाते।’
वह दोनो चले गये तो बा ने दोनों हाथ उठाकर ऊपर की तरफ हाथ जोड़कर कहा-‘चलो इस दान ही समझ लो। हो सकता है उसके अंग्रेजी का मंत्र से हम पर कृपा हो जाये।’
दीपक बापू ने कहा-‘यह दान नहीं है क्योंकि यह सुपात्र को नहीं दिया गया। दूसरा कृपा तो सर्वशक्तिमान ही करते हैं और उन्होंने कभी कमी नहीं की। हम तो उनकी कृपा से ब्लाग लिख रहे हैं उसी से हीं संतुष्ट हैं। फ्लाप और हिट तो एक दृष्टिकोण है। कौन किसको किस दृष्टि से देखता है पता नहीं। फिर अंतर्जाल पर तो जिसका आभास भी नहीं हो सकता उसके लिये क्या किसी से याचना की जाये।’
बा ने पूछा-‘पर यह मंत्र जाप की बात कर रहा था। फिर धंधे की बात कर रहा था समझ में नहीं आया।’
दीपक बापू ने कहा-‘इसलिये तो मैंने उसे सौ रुपये दे दिये कि वह तुम्हारी समझ में आने से पहले निकल ले। क्योंकि अगर तुम्हारे समझ में आ जाता तो तुम देने नहीं देती और बिना लिये वह जाता नहीं। समझ में आने पर तुम फंदेबाज से लड़ बैठतीं और वह पैसा लेकर भी वह अपना अपमान नहीं भूलता। फिर वह आना बंद कर देता तो यह कभी कभार हास्य कविताओं का मसाला दे जाता है उससे भी हाथ धो बैठते। यह तो सौ रुपये का मैंने दंड भुगता है।’
इतने में लाइट आ गयी और बा ने कहा-‘लो आ गयी बिजली! अब बैठ जाओ। फंदेबाज ने कोई मसाला दिया हो तो लिख डालो हास्य कविता।’
दीपक बापू ने कहा-‘अब तो जा रहे सर्वशक्तिमान के दरबार में। आज वह कोई मसाला नहीं दे गया बल्कि हमारी हास्य कविता बना गया जिसे दस को सुनायेगा। अभी तक हमने उसकी टोपी उड़ायी है आज वह उड़ायेगा।
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