Sunday, September 28, 2008

कयामत अब किश्तों के कहर बरपाती है-व्यंग्य शायरी

माशुका की ख्वाहिश पर
आशिक ने एक चुराया हुआ शेर
कुछ यूं सुनाया
‘हम तो मोहब्बत के दीवाने है
प्यार करते है रोज रोज
जिंदगी ऐसे ही कट जायेगी
आखिर एक दिन तो कयामत आयेगी’

सुनकर माशुक भड़क उठी और कहा
‘इस खूबसूरत मौके पर भी
तुम्हें कयामत की याद आयी
दिल में कोई अच्छी सोच नहीं समाई
लगता है अखबार नहीं पढ़ते हो
इसलिये केवल प्यार में
कयामत के कसीदे गढ़ते हो
ऊपर वाले का घर छोड़कर
कयामत कभी की फरार हो गयी
अब तो चाहे जहां
जब चली आती है
एक दिन में दुनियां को तबाह करे
अब उसमें नहीं रही ताकत
इसलिये कयामत किश्तों में
कहर बरपा जाती है
टीवी पर बहता खून देखो
या अखबार के अल्फाजों में
हादसों की खबर पढ़ो
तभी कोई बात समझ आती है
इंसानों के उड़ जाते हैं चीथड़े
उन पर एक दिन रोकर जमाना
फिर कयामत के शैतानों पर ही
नजर लगाये रहता हैं
कभी उनके स्कूल तो कभी
उनकी माशुकाओं के नाम का जिक्र
चटखारे लेकर
पर बात अमन कायम करने की करता है
पड़ गयी हैं कयामत पर
ऐसी शायरी पुरानी
कई तो याद है मुझे याद हैं जुबानी
उसे भुलाने के वास्ते ही
तुम्हें आशिक बनाया
पर तुम्हारी शायरी सुनकर पछता रही हूं
इसलिये भूल जाओ मुझे
नहीं तो तुमसे मिलकर
रोज मुझे कयामत की याद आयेगी

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