Saturday, June 7, 2014

समंदर का गुणा भाग-हिन्दी कविता(samandar ka guna bhag-hindi poem)



तपते सूरज की आग बरसाती किरणें
इंसानों के शरीर से निकलता पसीना
पानी के लिये भटकते पशु पक्षी
कोई मौन होकर सह रहा है
कोईै हाहाकर दर्द कह रहा है
 सूखे तालाब गर्म हवाओं के थपेड़े सहते पेड़
दूर विराजमान समंदर
मौसम के गुणा भाग में व्यस्त है
बादलों को नहीं सौंप रहा हवाओं के हाथ
क्योंकि वह धरती पर बने कैलेंडर नहीं देखता
इंतजार करता है वह भी
सूरज के इशारे का
जो थक थक जायेगा आग बरसाते
फिर धरती पर अपनी कोमल दृष्टि डालेगा
तब अपनी उंगली उठायेगा।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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