इधर जाएँ कि उधर
यह कभी तय नहीं कर पाए
जिस माना को पाने की चाहत है
उसके आदि और अंत को समझ नहीं पाए
चारों और फैली दिखती है रोशनी
पर कभी हाथ से पकड़ नहीं पाए
कहीं इस घर मे मिलेगी
कहीं उस दर पर सजेगी
और कहीं किसी शहर में दिखेगी
उसके पीछे दौडे जाते लोग
जितना उसके पास जाओ
वह उतनी दूर नजर आये
सौ से हजार
हजार से लाख
लाख से करोड़
गिनते-गिनते मन की भूख बढती जाये
कहै दीपक बापू
माया की जगह जेब में ही है
उसे सिर मत चढ़ाओ
इधर-उधर देख क्यों चकराये
पीछे जाओगे तो आगी भागेगी
बेपरवाह होकर अपनी रह चलोगे
तो पीछे-पीछे आयेगी
जितना खेलोगे उससे
उतना ही इतरायेगी
मुहँ फेरोगे तो खुद चली आयेगी
आदमी की पास उसका है धर्म
करते रहो समर्पण भाव से अपना कर्म
सत्य का यही है मर्म
जीवन के खेल में वही विजेता होते
जो सत्य के साथ ही चल पाए
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आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
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