Thursday, September 13, 2007

चंडू खाने से खबर है आयी
अंतर्जाल से हिन्दी से गया साधुवाद
छायेगा अब गालीवाद
पहली पोस्ट में ही धाक जमाई
छद्म नाम रखकर एक कायर
किस तरह शीर्षक में ही गाली
लिखकर हिट जुटा गया
बात हमारे समझ में न आयी
कल तक फेरते रहे आंख
पर आत्मा नहीं फेर पाए
शब्द और विचार और बार-बार कहैं
निकाल हमें बाहर
मात्रृ भाषा की करनी है लडाई

चन्द लोग पढ़ क्या लेते हैं हिन्दी
समझते हैं अपने को समझते हैं
तुलसी, सूर और प्रेमचंद
हम जो लिखें उस पर बजायें ताली
जहां जाएँ वहीं छाये
कबीर और मीरा जैसे पूजे जाएँ
यही सोच कर घर से निकलते है
अपने विचारों में अस्वच्छ्ता लिए
नीयत रहते हैं काली
साफ हैं तो नाम क्यों छिपाएँ
किससे भय की भावना मन में पाली

योग्यता है नहीं
अहंकार उड़ रहा है आसमान में
दानव की तरह अदृश्य रहकर
करते है हमला
अमेरिका और रूस की बात करेंगे
जैसे बहुत बडे ज्ञानी हौं
नासिक से गंध
कर्ण से श्रवण
और चक्षु से दर्शन करने की तमीज नहीं
अपने मन में विद्वान होने की
गलत फ़हमी पाली

कहैं दीपक बापू
गलतफहमी में मत रहना
तुम भूल सकते हो
पर हम भी तलाश रहे हैं
अपने छद्म ब्लोग पर अभद्र कमेन्ट
करने वाले को
कोई मामूली ब्लोगर मत समझना
हमारे शब्द ही हैं अमोघ बाण
एक बार चलकर फिर लॉट आएंगे
मात्र भाषा हिन्दी का वरदान
हर गद्य-पद्य रचना के तत्काल बाद ही
लौटती हैं तरुणाई
एक बार अपना परिचय दे दो
फिर देखो हमारी कविताई
याद रखना सुबह शाम
विचरते हैं हम चौपालों पर
रख लो तुम अपने लिए दोपहर की पाली
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