बचपन से ही पढते आ रहे
भक्ति भाव से श्रीगीता
फिर भी नही लगता आया हमें ज्ञान
पता नहीं लोग पढते हैं या नहीं
समझ से परे लगता उनका बखान
श्रीगीता का यही संदेश समझ में आता है
'कर्म जैसा ही फल होगा
निष्काम भक्ति से परमात्मा प्रसन्न होंगे
करेंगे जीवात्मा का कल्याण'
ईश निंदा हेतु किसी के शीश पर प्रहार
करने का हमने नहीं देखा उसमें ज्ञान
परमात्मा द्वारा स्वत: ही
निंदकों के लिए किया गया है
कीट योनि में भेजने का विधान
कैसे ले सकता है यह जिम्मा कोई इन्सान
कहैं दीपक बापू
हो सकता है हमसे श्रीगीता का श्लोक
आख़िर हम हैं इन्सान और यह है भूलोक
न देवता हैं, न निवास है स्वर्ग लोक
गलतियों के पुतले हैं, देह का नहीं अभिमान
हम तो इतना जानते
युद्ध से विरक्त हो रहे अर्जुन को
वीरता दिखाने के लिए प्रेरित करते हुए भी
दिया था श्री कृष्ण जी ने अहिंसा का संदेश
सबके कर्मों का फल देने का
अपने पास ही रखा विधान
फिर भी महाज्ञानी होने का दवा नहीं करते
हम संशय से जूझ रहे हैं
ढूंढते हैं कोई ज्ञानी-ध्यानी
जो इस विषय पर हमें दे ज्ञान
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आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
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