स्वयं की है दौलत में आसक्ति,
वही सिखा रहे हैं सभी को करना
देश की भक्ति।
न आसमान गिर रहा है
न जमीन धंसक रही है
आम इंसान उनके रंगीन दृश्यों पर
कभी दृष्टि न डाले,
अपने अंदर खास होने के
कभी ख्याल न पाले,
इसलिसे उसे कभी सपने बेचकर बहलाते,
कभी सामने पर्दे पर
खौफ के मंजर भेजकर डराते,
रात की रौशनी से रोमांस करने वाले
दिन में पूरे जमाने को
भरमाने में लगाते अपनी शक्ति।
जिनके लिये जज़्बात हैं, खाने का कबाब ,
उनके लिये पैसा ही है शराब,
असली खून पर उठाकर लाते बेचने आंसु,
नकली कामयाबी पर जश्न बेचते धांसु,
नारों को सोच बताकर बहस करते,
खाली वादों में ही
बड़े इंसानों की दरियादिली की हवस भरते,
ढेर सारे सामान लुटा लिये
फिर भी नहीं होती उनको विरक्ति,
जब नहीं होता सामान दुकान में
बेचने लगते हैं बाजार में देशभक्ति।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
---------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
-
*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
1 comment:
Good Shayri. Thank you.
http://www.banglablogs.org/out.php?ID=100
Post a Comment