खड़े लोगों की भीड़ को
कब तक बहलाओगे।
इंसान की आदतों को
कब तक भीड़ में छिपाओगे।
टकराते हैं जब लोगों मे मतलब आपस में
तब जंग भी होती है
इंसान अपने लिये जागता है
पर भीड़ तो हमेशा सोती है
लोगों की भीड़ में ढूंढते हो
आदमी-औरत, गरीब-अमीर
और शोषक-शोषित
बांटकर उनको
तरक्की के रास्ते पहुंचाने का
दिखावा कब तब कर पाओगे।
बरसों से यही हाल है
जो आज दिख रहा है
जमाने ने देखा है तुम्हारा दौर भी
जब तुूम्हारे हाथ में था अलादीन का चिराग
तब भी तुमने कोई जादू नहीं किया
इस बात पर करना जरूरी है गौर भी
वादे करना और कसमें खाना
तुम्हारी पुरानी आदत है
पर जमाने को कब तक
खाली भरोसे पर बहलाओगे
अंधेरे में गुजारते हुए बरसों हो गये
खाली चिराग सजाकर
कब तब रौशनी का वास्ता दिलाओगे।
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