Wednesday, August 22, 2007

ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमाएं

पुरानी धरोहर के विभाग में मची थी खलबली
क्योंकि सर्वेसर्वा ने आजादी के दिन
ऐक कार्यक्रम में कहा था
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
वह प्रतिमाएं हैं जो अब पुरानी हो चलीं
पर हमें उनका दामन नहीं छोड़ना
अपने विभाग में उन्हें बनाए रखना
ताकि लोगों में बने अपने विभाग की
छबि स्वच्छ और एकदम भली

कई अधिकारियों और कर्मचारियों की
हवाईयां उड़ रही थीं
अखिर यह प्रतिमाएं कहाँ हैं
कभी देखी नहीं अपने यहां
अगर थी तो गयी कहाँ
अब तो लोगों में चर्चा का विषय बन गयीं हैं
लोगों ने कभी देखी नहीं
इसलिये देखने आएंगे
हम उन्हें क्या दिखाएंगे
अख़बार और टीवी वाले चिल्लायेंगे
और इसके साथ ही
प्रतिमाएं ढूँढने की कवायद
जोरशोर से शुरू हो चली

बहुत कोशिश करने पर भी
वह कहीं न मिली
थक-हार कर सर्वेसर्वा से
ही पता पूछने के लिए
ऐक सहायक उनके पास गया
तो उन्होने खा
'तुम पगला गये हो
भाषण नहीं समझते
मैंने ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के
किसी पत्थर की प्रतिमाओं का
जिक्र नहीं किया था
मेरा तात्पर्य केवल भावनाओं से था
तुम लोग तो उससे भी दूर रहना
मेरी सुविधाओं पर ही ध्यान रखना
हमारे यहाँ कैसे रह सकती है
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
जब कहीं भी नहीं चली
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