Tuesday, August 21, 2007

मयखाने के पास अस्पताल

अपने
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अब रात के अंधेरो से ज्यादा
दिन की रौशनी में
अपनों की अँधेरी नीयत से
घबडाते हैं
क्योंकि जो दुष्कर्म करते थे अनजाने लोग
वही अपने कर दिखाते हैं
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मय खानों के पास अस्पताल
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पहले लोग मयखाने तक
खुद जाते और आते हैं
और फिर खुद जाते और
दूसरे उन्हें लाते हैं
मय का मायाजाल ऐसा कि
जब तक चढ़ी रहे दिलो-दिमाग पर
आदमी शेर की तरह गरजता है
और जब उतरे तो बिल्ली की तरह डरता है
इसलिये मय खानों के पास
अस्पतालों की लगने लगी हैं बाढ़
पीने वालों की जब उखड़ने लगे सांस
तब बिना इलाज मरने का गम
साथ लेकर नहीं जाते हैं
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कल्पना
श्रृंगार रस की कविता को
ऐक कवि महोदय
बहुत लंबा खींच जाते हैं
महिलाओं में इसीलिये
प्रसिद्धि भी पाते हैं
जब उनसे वजह पूछी गयी
तो बोले
'क्रीम, पाउडर और फैशियल
के ज़माने में जब लोग
वास्तविक सौन्दर्य को
देखने के लिए तरसे जाते हैं
और यह तो प्रकृति का नियम है
जिससे लोग होते हैं वंचित
उसी के लिए मरे जाते हैं
नहीं करते किसी की तारीफ दिल से
इसलिये महिलाएं देखती हैं
मेरी कविता की नायिका में अपनी तस्वीर
पुरुष कल्पनाओं में ही सौन्दर्य की
प्रशंसा का आनंद उठाते हैं
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