Saturday, August 25, 2007

बगुला भगत पर टिकी धर्म की धुरी

मानव हृदय की कमजोरी का
लाभ उठाकर भक्ति के नाम पर अंधविश्वास
और प्रेम के नाम पर प्रपंच रचाएं
पहने वस्त्र साधू और फकीर के
चाल, चरित्र और चाहत असाधु की
यज्ञ करें राष्ट्र के कल्याण के लिए
अपने लिए दौलत के अंबार जुटाएँ

मूहं में नाम , बगल में छुरी
बगला भगत पर टिकी धर्म की धुरी
कौन किसको साधे
कौन किससे सधे
सबने निज स्वार्थ ओढ़ लिए
माया के अँधेरे में भटक रहे हैं
एअर कन्डीशन कमरे में सांस ले रहे हैं
भ्रम,भय और भ्रष्टाचार का अँधेरा फैलाकर
लोगों को रोशनी के अहसास बैच रहे हैं
खालीपन है सबकी आँखों में
इन्सान तरस रहा है
इन्सान देखने के लिए
कहीं समंदर का पानी मीठा बताएं
कभी भगवान को दूध पिलायें
कही मूर्ती के आंसू टपकावाएं

इंसानियत और ईमान ढूंढते थक गये
किसी इन्सान में देखने के लिए
कौन कहता है कि
मजहब नहीं सिखाता बैर रखना
दुनियां में हर जंग पर
धर्म-मजहब का नाम लिखा है
इंसानों के बीच खडी है दीवार
इनके नाम पर सब लड़ रहे है
अपने -अपने पंथ के गौरव के लिए
बनाया था ऊपर वाले ने
इन्सान को आजादी से
जीने के लिए
उसने स्वर्ग के मोह में
अपने को गुलाम बना लिया
जात , भाषा और धर्म की
झूठी शान की खातिर लड़ने के लिए
जो जिम्मा लेते है ऊपर वाले का
सदेश फ़ैलाने की दुनिया की
अपने इंसानों को ही
दूसरे के लिए लिए शैतान बनाएं

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