Tuesday, January 27, 2009

लोगों में पैदा कर सकें खेद-हास्य कविता

नयी धोती, कुरता और टोपी पहनकर
बाहर जाने को तैयार हुए
कि आया फंदेबाज और बोला
‘दीपक बापू
अच्छा हुआ तैयार हुए मिल गये
समय बच जायेगा
चलो आज अपने भतीजे के पब के
उदघाटन कार्यक्रम में तुम्हें भी ले जाता।
वहां तुम्हें पांचवें नंबर का अतिथि बनाता।
किसी ने नहीं दिया होगा ऐसा सम्मान
जो मैं तुम्हें दिलाता
खाने के साथ जाम भी पिलाता’।

सुनकर क्रोध में भर गये
फिर लाल लाल आंखें करते हुए बोले
दीपक बापू
‘कमबख्त जब भी मेरे यहां आना
प्यार में हो या गुस्से में जरूर देना ताना
पब में पीने से
शराब का कोई अमृत नहीं बन जाता।
पीने वाला पीकर तामस
प्रवृत्ति का ही हो जाता ।
झगड़े पीने वाला शुरु करे या दूसरा कोई
बदनाम तो दोनों का नाम हो जाता।
शराब कोई अच्छी चीज नहीं
इसलिये घर में सभी को पीने में लज्जा आती
बाहर पियें दोस्तों के साथ महफिल में
तो कभी झगड़ों की खबर आती
शराब-खाने के नाम पर कान नहीं देंगे लोग
इसलिये पब के नाम से खबर दी आती
शराब का नाम नहीं होता
इसलिये वह सनसनी बन जाती
शराब पीने पर फसाद तो हो ही जाते हैं
शराब की बात कहें तो असर नहीं होता
इसलिये खाली पब के नाम खबर में दिये जाते हैं
पिटा आदमी शराबी है
इसे नहीं बताया जाता
क्योंकि उसके लिये जज्बात पैदा कर
सनसनी फैलाने के ख्वाब मिट जाते हैं
पब नाम रखा जाता है इसलिये कि
शराब का नाम देने में सभी शरमाते हैं
वहां हुए झगड़ों में भी
अब ढूंढने लगे जाति,धर्म,भाषा और लिंग के भेद
ताकि शराब पीकर पिटने वालों के लिये
लोगों में पैदा कर सकें खेद
रखो तुम अपने पास ही उदघाटन का सम्मान
कभी पब पर कुछ हुआ तो
हम भी हो जायेंगे बदनाम
वैसे भी हम नहीं पीते अब जाम
अंतर्जाल पर हास्य कवितायें लिखकर ही
कर लेते हैं नशा
हमें तो अपना कंप्यूटर ही पब नजर आता है

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Thursday, January 22, 2009

विचार और विषय को निर्बाध गति से बाहर आने दें-आलेख

हर लिखने वाले की रचना में साहित्य ढूंढना ठीक नहीं है। उसी तरह हर साहित्यकार में भाषा शिल्प की संभावना भी नगण्य रहती है। मुख्य बात है कि लिखने वाले दो तरह के होते हैं एक तो वह जो अपने मन और बुद्धि में आते जाते विचारों को अभिव्यक्ति देने के लिये लिखते हैं दूसरे वह जो भाषा और शिल्प की दृष्टि से भाषा में साहित्य में परिवृद्धि के लिये सृजन करते हैं। ऐसे में संभव है कि अभिव्यक्ति के भाव से लिखने वाला शिल्प की दृष्टि से कमजोर होते हुए भी अपनी बात पाठक तक पहुंचाने में सक्षम हो जाये और साहित्यकार को इसमें सफलता न मिले।
किसकी रचना साहित्यक है और किसकी नहीं इस पर हमेशा बहस होती है और भाषा शिल्प की दृष्टि से कमजोर रचनाओं पर उनका उपहास उड़ाया जाता है भले ही उन्होंने पढ़ने वाले पाठकों की संख्या अधिक हो। भाषा और शिल्प से सजी साहित्यक रचनाओं को पंसद करने वाले हमेशा ऐसी रचनाओं का मखौल उड़ाते हैं। ऐसे में अतंर्जाल पर लिखने वालों को शायद संकोच होता है कि कहीं उनका मजाक न उड़ाया जाये। उन्हें अब इस संकोच में से परे हो जाना चाहिये। सच बात तो यह है कि एक दूसरे को अपने से हेय प्रमाणित करने के लिये हिंदी लेखकों में हमेशा संघर्ष चलता रहा है।

भारत में हिंदी निरंतर बढ़ती रही है पर अभी तक बौद्धिक,आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत लोगों का उस पर नियंत्रण रहा है और इसलिये ऐसे लेखकों को आगे नहीं आने दिया गया जिन्होंने शक्तिशाली लोगों कह चाटुकारिता नहीं की। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि अंतर्जाल पर हिंदी के पढ़ने वाले कुछ लोग अभी भी उसी पुरानी मानसिकता के साथ जी रहे हैं। वह लोगों की श्रेणियां बनाने में लगे हैं और उसका कोई तार्किक आधार उनके पास नहीं दिखता और जो वह आधार प्रस्तुत करते हैं उस पर स्वयं ही खड़े हुए नहीं दिखते। कुछ लोग तो ऐसा प्रयास करते हुए दिखते हैं कि अंतर्जाल पर हिंदी भाषा की विकास यात्रा का टिकट उन्होंने कटवाया है और इसलिये उनका निर्णय बहुत महत्वपूर्ण है और वह जो कहते हैं उसी राह पर सब चलें। समाचार पत्र पत्रिकाओं में हिंदी ब्लाग के विषय पर प्रकाशित लेखों को पढ़ने से पता लगता है कि वह ब्लाग लेखकों को पुरानी राह पर चलने का ही संदेश इस आशय से दिया जा रहा जैसे कि लेखों के लेखक अंतर्जाल विद्या में पारंगत हों।

अंतर्जाल पर जो ब्लाग लेखक सक्रिय हैं उनको यह बात समझ लेना चाहिये कि वह जिस तरह अपने ब्लाग पर लिख रहे हैं उसका इस देश में अनेक लोगों को ज्ञान नहीं है। अधिकतर लोग पत्र पत्रिकाओं में पढ़ने के आदी हैं इसलिये वह यह अपेक्षा कर रहे हैं कि ब्लाग पर भी वैसा ही दिखे। यह संभव नहीं है। सच बात तो यह है अंतर्जाल पर भाषा और शिल्प की बजाय कथ्य और भाव महत्वपूर्ण हैं और जहां किसी ने अपने भावों को रोककर भाषा और शिल्प पर विचार किया वहां वह मूल विषय को ही भूल जायेगा। बहुत कम लेखक-या कहा जाये उंगलियों पर गिनती करने लायक-भाषा और शिल्प की दृष्टि से बेहतर साहित्य लिख सकते हैं और अंतर्जाल पर जिस तरह पढ़ने के लिये सीमित समय और जगह है वहां विषय और विचार का होना महत्वपूर्ण है।

अंतर्जाल पर कुछ मूर्धन्य ब्लाग लेखक बहुत अच्छी साहित्यक रचनायें प्रस्तुत कर रहे हैं वह बधाई के पात्र हैं पर उनको देखकर कोई कुंठा अपने अंदर लाने की आवश्यकता नहीं है। इस हिंदी ब्लाग जगत में ऐसे भी लोग हैं जो भाषा की शिल्प की दृष्टि से बहुत अच्छा नहीं लिखते पर उनके शब्द मन को छू लेने वाले होते हैं तो कई लोगों के विषय भी बहुत दिल्चस्प होते हैं। ऐसे में जो लोग अपने मन की बात यह सोचकर लिखने से कतराते हैं कि उनके उनके मस्तिष्क में बहुत अच्छे विचार और विषय अपना डेरा जमाये बैठें हैं पर भाषा और शिल्प की दृष्टि से प्रस्तुत करने की उनकी कोई योजना नहीं बन पा रही है तो उनको यह संकोच छोड़ देना चाहिये। भाषा के आकर्षक शब्द और शिल्प की दृष्टि से विचार करने का अर्थ यह होगा कि अपनी रचनाओं को तत्काल निर्बाध गति से बाहर आने से रोकना। हां, लिखते हुए सामान्य व्याकरण का ध्यान तो रखा जाना चाहिये और शब्द संयोजन पर भी अपनी पैनी दृष्टि रखें पर उतनी ही जिससे कि अपने विचार और विषय से ध्यान न भटके। जहां तक साहित्य का प्रश्न है तो आज भी यही शिकायत की जाती है कि लोग साहित्य कम बेहूदी और अश्लील रचनायें अधिक पसंद करते हैं। यह एक अलग मुद्दा है पर एक बात का संकेत तो मिलता है कि लोगों की दिलचस्पी केवल विषय और विचार के अभिव्यक्त भाव में है। ऐसे में सात्विक विषयों में ही रस और अलंकार भरे जायें तो बेहतर हैं। अंतर्जाल एक अलग मार्ग है पर बाहर की दुनियां को यह प्रभावित करेगा इसमें संदेह नहीं है। वैसे ही आजकल की व्यस्तम जिंदगी में लोगों के पास कम समय है और अधिकतर ब्लाग लेखक अव्यवसायिक हैं तब व्यवसायिक प्रकाशनों की तरह सजी संवरी साहित्यक रचनायें मिलना संभव नहीं है फिर पढ़ने वाले को भी कितना समय मिल पाता है यह भी एक विचार का विषय है। ऐसे में भी अंतर्जाल पर लिखने वाले जेा ब्लाग लेखक लिख रहे हैं उन्हें अपने मस्तिष्क में सक्रिय और विचार निर्बाध गति से बाहर आने देने का प्रयास करना चाहिये।
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Sunday, January 18, 2009

पर्दे पर रिश्ते पैसे लेकर बने होते हैं-हास्य कविता

बेटे ने पूछा मां से
‘मां टीवी पर धारवाहिकों में
सभी के दादा दादी तो बहुत जवान होते है।ं
सभी के बाल होते हैं काले
चेहरे होते हैं गोरे
हमेशा रहते वह सजे संवरे
पोतों को प्यार करने
दौड़ते है उनको गोदी में उठाने बहुत जल्दी
जब वह रोते हैं
अपने दादा दादी तो बस बीमार होकर सोते है।
उनके बाल भी हो गये सफेद
हमेशा पुराने कपड़े पहने रहते हैं।
प्यार करते हैं बहुत कम
कभी भी उनके उनके चेहरे
टीवी वाले दादा दादी जैसे नहीं होते हैं।

मां ने कहा-‘
बेटे! टीवी देखकर भूल जाया करो
वहां सब काल्पनिक दृश्य और
लोग नकली होते हैं
अभी तू दादा दादी के लिये कह रहा है
कल मां बाप के लिये भी यही कहेगा
क्योंकि वह भी कभी बूढ़े नहीं होते हैं
हमने पाया है एक दूसरे को जन्म से
पर्दे पर रिश्ते पैसे लेकर बने होते हैं
इसलिये सभी के चेहरे प्रफुल्ल होते है
जिंदगी की है कठिन डगर
उसे पर्द से कभी नहीं मिलाना
क्योंकि हम जी रहे हैं हकीकत में
पर्दे पर तो बस ख्वाब ही होते है।

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Wednesday, January 14, 2009

शर्तों पर आजादी-हिंदी शायरी

कितने भी बुरे लगे
कई रंगों में एक रंग तो
चुनना ही होगा
लोगों को आजादी दी है
इस शर्त के साथ
कि बेरंग उनको नहीं रहना होगा
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साफ सुथरे पहने कपड़ों में लिपटे
सजे हैं खूबसूरत बुत
उनके चेहरों में ही
कोई अपना एक तय करना होगा।
किसी के दिल की नीयत पर
सवाल कभी नहीं करना
असत्य से सत्य की ओर जाने की
ख्वाहिश बहुत अच्छी है
पर बुरे भले का फैसला
आम इंसान को नहीं करना होगा।
दौलत और शौहरत के ढेर पर
खड़े हैं जो बुत बने
उनकी हर बात का समर्थन करना
पूरी आजादी है उनको
जो हांक सकते हैं जमाने को
अपनी दौलत और ताकत से
एक छोड़ जाये ठिकाना
तो दूसरे बुत को सहन करना होगा
बस आम इंसान को तो
भीड़ में शामिल भेड़ की तरह रहना होगा
शर्तों पर मिली आजादी को
अपने कंधों पर मूंह बंद रख वहन करना होगा

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Friday, January 9, 2009

आय और आयु का सवाल-व्यंग्य

उस 21 साल की अभिनेत्री ने एक 24 साल की अभिनेत्री के लिये कह दिया कि ‘वह मेरे जैसी कम उम्र की अभिनेत्रियों के लिये प्रेरणास्त्रोत हैै।’
भला इसमें बवाल मचने जैसे क्या बात है? मगर मचा क्योंकि एक स्+त्री दूसरे के मुकाबले अपने को कम उम्र का बताकर उसके दिल पर घाव दे रही है जो प्रेरणास्त्रोत बताने से भर नहीं जाता। टीवी चैनल वालों ने 24 साल की उस अभिनेत्री को बूढ़ी कहकर प्रचारित करना शुरू किया और फिर उससे प्रतिक्रिया लेने पहुंच गये। कई बार उस अभिनेत्री के लिये बूढ़ी बूढ़ी शब्द सुनकर हमें हैरानी हुई। वजह! इस समय उस बड़ी अभिनेत्री को भारत की सैक्सी अभिनेत्री कहा जाता है-इसका अर्थ हमें स्वयं भी नहीं मालुम- और नयी आयी छोटी अभिनेत्री भी कम प्रसिद्ध नहीं है। पहले दो क्रिकेट सितारों-इस खेल के लिये खिलाड़ी शब्द अब हल्का लगता है-और एक फिल्मी सितारे से उसके रोमांस के चर्चे बहुत हुए हैं। सवाल यह है कि 24 साल और 21 साल की युवती के बीच इस तरह का वार्तालाप वाकई तनाव का कारण हो हो सकता है?
जवाब है हां! कहते है कि आदमी की आय और औरत की आयु पर कभी उससे सवाल नही करना चाहिये। समझदार कहते हैं कि इशारों में एसी बात नहीं करना चाहिये। उससे उनमें गुस्सा उत्पन्न होता है। खैर, उस दिन दो लड़कों के बीच संवाद इस तरह जो दिलचस्प तो था ही साथ ही यह भी जाहिर करता है कि मनुष्य की मानसिकता कुछ ऐसी ही है कि वह कभी कभी किसी दूसरे के बारे में कोई फैसला उसके साथी की उम्र देखकर भी कर लेता है। भले ही वह दूसरा आदमी उमर का छोटा पर जब वह अपने से बड़ी आयु की संगत करता है तो पहला आदमी चाहे तो भी वह अपने मानसिक दृष्टिकोण को बदल नहीं सकता।
पहला लड़का-‘अरे, तेरी मनपसंद हीरोइन की फिल्म आयी है। चलेगा देखने?
दूसरा बोला-‘अरे, यार वह तो अब बूढ़ी लगने लगी है।’
पहला-‘क्या बेवकूफी की बात करता है वह तेरे से केवल पांच साल ही तो बड़ी है। आजकल यह सब चलता है।’
दूसरा बोला-‘नहीं यार, जब तक वह जवान हीरो के साथ उसका अफेयर था तब तब मुझे वह अच्छी लगती थी आजकल वह मेरे पिताजी के बराबर अभिनेता के बराबर से उसके अफेयर की चर्चा है इसलिये मेरा दिमाग बदल गया है।’
पहले वाले को जैसे ज्ञान प्राप्त हो गया और वह बोला-‘यार, बात तो सही कहते हो। मेरे दिमाग में ऐसी ही बात चल रही थी कि आखिर इतनी बड़ी उम्र का हीरो है और वह हीरोइन उसके साथ रोमांस कर रही है।’
कहीं से एक तीसरा लड़का भी आ गया था और बोला-‘उस हीरो को तो अधिक सिगरेट पीने के कारण दिल दौरा भी पड़ चुका है। एक बार मैंने टीवी पर सुना था।’
स्वाभाविक है यह 21 वर्ष की उस हीरोईन के दिमाग के भी बात स्वाभाविक रूप से आती हो क्योंकि 24 वर्ष की बड़ी हीरोईन का जिस हीरो के साथ कथित रूप से रोमांस है वह भी 43 से ऊपर का हो चुका है। ऐसे में उसकी गलती स्वाभाविक लगती है। कई बार टीवी पर होने वाले साक्षात्कारों में उस हीरो चेहरे पर झुर्रियां दिखाई भी दे जाती हैं। वैसे यह प्यार और शादी निजी विषय हैं और इन पर चर्चा करना ठीक नहीं है पर जब आप सार्वजनिक जीवन में और वह भी अपनी देह के सहारे अभिनेता और अभिनेत्रियों हों तो -फिल्मों से कला का कोई लेना देना लगता भी नहीं है-फिर उम्र और चेहरे की चर्चा के साथ दैहिक रिश्तों पर भी आम लोग दृष्टि डालते ही हैं। हीरोइने युवा लोगों के जज्बातों के कारण ही अपना स्थान बनाये हुये हैं पर उनके रोमांस की खबरों जब अधिक आयु वाले हीरो के साथ आती हैं तो लड़कों में भी उनके प्रति आकर्षण कम हो सकता है। वैसे दो तीन लड़कों की बात पर निष्कर्ष निकालना गलत भी लग सकता है।

मर्दों की आय का भी कुछ ऐसा ही मामला है। एक आदमी सरकारी नौकरी में था। उसकी नौकरी में उपरी आय का कोई चक्कर नहीं था। उसके माता पिता ने उसकी शादी होते ही अपना बड़ा मकान बेचकर छोटा मकान इस इरादे लिया कि छोटे बेटे को भी व्यापार करा देंगे। वैसे उसके पिताजी को यह भ्रम था कि बड़ी बहु कहीं मकान पर कब्जा कर हमें बाहर न निकाल दें। बड़े बेटे ने समझाया कि नौकरी कुछ पुरानी होने दो ताकि वेतन बढ़े तो वह भाई के लिये कुछ इंतजाम कर देगा पर वह नहीं माने। बहरहाल नौकरी वाला बेटा किराये के मकान में चला गया। उसकी पत्नी ने उसे ताना भी दिया कि‘देखो तुम्हारे माता पिता ने मेरे माता पिता के साथ धोखा किया।’

बहरहाल माता पिता का छोटा बेटा अपने व्यापार में घाटा उठाता गया तो उन्होंने वह मकान भी बेच दिया और किराये के मकान में आ गये। अब उनके रिश्तेदारी उनसे सवाल करने लगे कि यह क्या हुआ? बड़ा बेटा सामथर््यानुसार उनकी सहायता करता पर छोटे बेटे की नाकामी छिपाने के लिये आपने हाल के लिये वह बड़े बेटे और बहु को जिम्मेदारी बताते। बहु का हाल यह था कि वह अपने सास ससुर के साथ मुश्किल से दो महीने रही होगी पर अब हुआ यह कि वह अपने रिश्तेदारों के पास जाकर बड़े बेटे और बहु का रोना रोते रहते। रिश्तेदार बड़े बेटे को कहते। उसके रिश्तेदार यह समझते थे कि जब वह सरकारी नौकरी मेें है तो उपरी आय भी अच्छी होगी जबकि वह सूखी तनख्वाह में अपना घर चलाता था। रिश्तेदार व्यापारी धनी थे तो उसे कहते कि‘भई तेरी तन्ख्वाह कितनी है। उपरी कमाई तो होगी। अपने मां बाप की मदद किया कर बिचारे परेशान रहते हैं!’

बड़े बेटे को यह अपमानजनक लगता पर वह कर भी क्या सकता था? इधर पिता का देहावसान हुआ। फिर उसने किसी तरह अपने छोटे भाई की शादी भी करवाई पर अपने व्यसनों की वजह से उसकी नयी नवेली पत्नी भी उसको छोड़ गयी। इधर रिश्तेदारों के सवाल जवाब से वह चिढ़ता भी था। आखिर उसने एक दिन आकर एक बुजुर्ग रिश्तेदार को एक पारिवारिक कार्यक्रम में सभी के सामने कह दिया‘ चाचा जी आप में इतनी अक्ल नहीं है कि औरत की आयु और मर्द की आय नहीं पूछना चाहिये। अच्छा बताईये चाचा जी आपकी कुल आय कितनी है और चाची की उमर भी बताईये।’
चाचा के पैरों तले जमीन खिसक गयी। बहुत पैसे वाले थे पर अपनी आय इस तरह सार्वजनिक रूप से बताने का मतलब था कि जमाने भर के लोगों में एक आंकड़ा देना जो चर्चा का विषय बन जाये यानि चारों और डकैतों के यहां अपने घर पर आक्रमण करने का निमंत्रण देना। बड़े बेटे की यह बात सभी ने सुनी तो उसके बाद फिर रिश्तेदारों ने उससे यह सवाल करना बंद कर दिया।

इस तरह विवादों से बचने का सबसे बढि़या उपाय यही है कि किसी मर्द से उसकी आय और औरत से उसकी आयु न तो सीधे पूछना चाहिये न इशारा करना चाहिये। दूसरी बात अपने आप भी सतर्क रहें। कहीं अपनी आर्थिक तंगी और पत्नी की बीमारी की चर्चा न करें वरना इस तरह के सवाल कोई भी पूछ सकता है।
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Monday, January 5, 2009

टूटेगा तो आम आदमी-व्यंग्य कविता


गरीब का मान क्या, सम्मान क्या
उसके लिये तो रोटी से पेट भरने में ही
रोज मजा आता है
आत्मसम्मान और कौम के ईमान की
बात करते हैं वह सौदागर
जंग का मैदान हो या
अमन का रास्ता
दौलत का हर कतरा
जिनके ठिकाने की तरफ बढ़ता नजर आता है
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असली जंग का शंखनाद बड़े लोगों के भौंपू
रोज बजा रहे है
शायद मंदी से हैरान हैं
आम आदमी नहीं खरीद सकता रोज चीज
न देता हर विज्ञापन पर ध्यान
इसलिये सौदागर परेशान है
उनका नया और ताजा माल
कबाड़ बनता जा रहा है
पूंजी पर मंदी की मार हो गयी है ज्यादा
शायद जंग से तेजी लाने का है इरादा
मुनाफाखोरी और जमाखोरी के आदी
साहूकारों को जंग से क्या वास्ता
शांति में भी नहीं उनकी आस्था
दुनियां की दौलत का रथ
उनके दरवाजे तक ही जाता है
गरीब का क्या
वह तो उनके लिये भीड बन जाता है
इधर लड़े या उधर मरे
टूटेगा तो आम आदमी इसलिये
बड़े लोग भविष्य में हो न हो
फिलहाल जंग का बिगुल बजा रहे हैं

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Thursday, January 1, 2009

समाज, संस्कार और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न-आलेख

हम अक्सर अपने संस्कार और संस्कृति के संपन्न होने की बात करते हैं। कई बार आधुनिकता से अपने संस्कार और संस्कृति पर संकट आने या उसके नष्ट होने का भय सताने लगता है। आखिर वह संस्कृति है क्या? वह कौनसे संस्कार है जिनके समाप्त होने का भय हमें सताता है? इतना ही नहीं धार्मिक आस्था या विश्वास के नाम पर भी बहस नहीं की जाती। कोई प्रतिकूल बात लगती है तो हाल आस्था और विश्वास पर चोट पहुंचने की बात कहकर लोग उत्तेजित हो जाते हैे।

कभी किसी ने इसका विश्लेषण नहीं किया। कहते हैं कि हमारे यहां आपसी संबंधों का बड़ा महत्व है, पर यह इसका तो विदेशी संस्कृतियों में भी पूरा स्थान प्राप्त है। छोटी आयु के लोगों को बड़े लोगों का सम्मान करना चाहिये। यह भी सभी जगह होता है। ऐसे बहुत विषय है जिनके बारे में हम कहते हैं कि यह सभी हमारे यहां है बाकी अन्य कहीं नहीं है-यह हमारा भ्रम या पाखंड ही कहा जा सकता है।

स्वतंत्रता के बाद कई विषय बहुत आकर्षक ढंग से केवल ‘शीर्षक’ देकर सजाये गये जिसमें देशभक्ति,आजादी,भाषा प्रेम,देश के संस्कार और आचार विचार संस्कृति शामिल हैं। धार्मिक आजादी के नाम पर तो किसी भी प्रकार की बहस करना ही कठिन लगता है क्योंकि धर्म पर चोट के नाम पर कोई भी पंगा ले सकता है। देश में एक समाज की बात की गयी पर जाति,भाषा,धर्म और क्षेत्र के आधार पर बने समाजों और समूहों के अस्तित्व की लड़ाई भी योजनापूर्वक शुरु की गयी। बोलने की आजादी दी गयी पर शर्तों के साथ। ऐसे में कहीं भी सोच और विचारों की गहराई नहीं दिखती।

कभी कभी यह देखकर ऊब होने लगती है कि लोगों सोच नहीं रहे बल्कि एक निश्चित किये मानचित्र में घूम कर अपने विचारक,दार्शनिक,लेखक और रचनाकार होने की औपचारिकता भर निभा रहे हैं। नये के नाम एक नारे या वाद का मुकाबला करने के लिये दूसरा नारा या वाद लाया जाता है। फिल्म, पत्रकारिता,समाजसेवा या अन्य आकर्षक और सार्वजनिक क्षेत्रों में नयी पीढ़ी के नाम पर पुराने लोगों के परिवार के युवा लोगा ही आगे बढ़ते आ रहे हैं। ऐसा लगता है कि समाज जड़ हो गया है। अमीर गरीब, पूंजीपति मजदूर और उच्च और निम्न खानदान के नाम पर स्थाई विभाजन हो गया है। परिवर्तन की सीमा अब उत्तराधिकार के दायरे में बंध गयी है। कार्ल माक्र्स से अनेक लोग सहमत नहीं होते पर कम से कम उनके इस सिद्धांत को कोईै चुनौती नहीं दे सकता कि इस दुनियां में दो ही जातियां शेष रह गयीं हैं अमीर गरीब या पूंजीपति और मजदूर।

भारतीय समाज वैसे ही विश्व में अपनी रूढ़ता के कारण बदनाम है पर देखा जाये तो अब समाज उससे अधिक रूढ़ दिखाई देता हैं। पहले कम से कम रूढ़ता के विरुद्ध संघर्ष करते कुछ लोग दिखाई देते थे पर अब तो सभी ं ने यह मान लिया है कि परिवर्तन या विकास केवल सरकार का काम है। यहा तक कि समाज का विकास और कल्याण भी सरकार के जिम्मे छोड़ दिया गया है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद और अशफाकुल्ला के प्रशंसक तो बहुत मिल जायेंगे पर कोई नहीं चाहेगा कि उनके घर का लाल इस तरह बने। यह सही है कि अब कोई आजादी की लड़ाई शेष नहीं है पर समाज के लिये अहिंसक और बौद्धिक प्रयास करने के लिये जिस साहस की आवश्यकता है वह कोई स्वतंत्रता संग्राम से कम नहीं है।
अब कभी यहां राज राममोहन राय,कबीर,विवेकानेद,रहीम और महर्षि दयानंद जैसे महापुरुष होंगे इसकी संभावना ही नहीं लगती क्योंकि अब लोग समाज में सुधार नहीं बल्कि उसका दोहन करना चाहते हैं। वह चाहे दहेज के रूप में हो या किसी धार्मिक कार्यक्रम के लिये चंदा लेना के।

कभी कभी निराशा लगती है पर जब अंतर्जाल पर लिखने वाले लोगों को देखते हैं तो लगता है कि ऐसा नहीं है कि सोचने वालों की कमी है पर हां समय लग सकता है। अभी तक तो संचार और प्रचार माध्यमों पर सशक्त और धनी लोगोंं का कब्जा इस तरह रहा है कि वह अपने हिसाब से बहस और विचार के मुद्दे तय करते हैं। अंतर्जाल पर यह वैचारिक गुलामी नहीं चलती दिख रही है। मुश्किल यह है कि रूढ़ हो चुके समाज में बौद्धिक वर्ग के अधिकतर सदस्य कंप्यूटर और इंटरनेट से कतरा रहे हैं। उनको अभी भी इसकी ताकत का अंदाजा नहीं है समय के साथ जब इसको लोकप्रियता प्राप्त होगी तो परिवर्तन की सोच को महत्व मिलेगा। वैसे जिन लोगों की समाज के विचारकों, चिंतकों और बुद्धिजीवियों को गुलाम बनाने की इच्छा है वह लगातार इस पर नजर रख रहे है कि कहीं यह आजाद माध्यम लोकप्रिय तो नहंी हो रहा है। जब यह लोकप्रिय हो जायेगा तो वह यहां भी अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास करेंगे।

मुख्य बात यह नहीं कि विषय क्या है? अब तो इस बात का प्रश्न है कि क्या लोगों की सोच नारे और वाद की सीमाओं से बाहर निकल पायेगी क्योंकि उसे दायरों में बांधे रखने का काम समाज के ताकतवर वर्ग ने ही किया है। जब हम किसी विषय पर सोचे तो उसक हर पहलू पर सोचें। नया सोचें। देश की कथित संस्कृति या सस्कारों पर भय की आशंकाओं से मुक्त होकर इस बात पर विचार करें कि लोगोंं के आचरण में जो दोहरापन उसे दूर करें। हमारे समाज की कथनी और करनी में अंतर साफ दिखाई देता है और इसी कारण समाज के संस्कार और संस्कृति की रक्षा करने का विषय उठाया जाता है वह अच्छा लगता है पर नीयत भी देखना होगी जो केवल उसका दोहन करने तक ही सीमित रह जाती है। इसी कथनी करनी के कारण भारतीय समाज के प्रति लोगों के मन में देश तथ विदेश दोनों ही जगह संशय की स्थिति है। शेष किसी अगले अंक में
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Monday, December 29, 2008

दिल का इलाज तो शब्द ही कर पाते हैं-हिंदी शायरी

जख्म दिल पर हों या जिस्म पर
इंसान को बहुत सताते हैं।
जिस्म के लिये तो मिल जाती मरहम
दिल का इलाज तो शब्द ही कर पाते हैं।
कुछ जमाने की सुनो,कुछ अपनी कहो
कई दर्द आवाज में खुद ही बह जाते हैं।
अपने ही दर्द पर हंसना आसान नहीं
पर करते हैं जो ऐसा, अपने बयां खूबसूरती से सजाते हैं।
दुनियां में दर्द के सौदागर भी बहुत हैं
फिर हम अपने दिल की बात क्यों छिपाते हैं।
आओ बाजार चलें इससे पहले कोई चोरी कर जाये
लोगों के सामने अपना दर्द खुद ही सजाते हैं।

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Friday, December 26, 2008

युद्ध कोई क्रिकेट मैच जैसा नहीं होता-आलेख

देश में इस समय एक तरह से युद्धोन्माद का वातावरण बन गया है जो कि स्वाभाविक भी है। हर व्यक्ति अपने समाज और देश से प्रेम करता है और जब उस पर कोई आक्रमण आक्षेप होता है तो उसके मन में क्रोध के भाव आते ही हैं। अक्सर लोग आपस में एक दूसरे से सवाल करते हैं कि ‘पाकिस्तान से क्या युद्ध होगा’, युद्ध होगा कि नहीं’, या युद्ध में आखिर क्या होगा?’

अगर प्रचार और संचार माध्यमों के विश्लेषणों पर दृष्टिपात करने तो पाकिस्तान में भी यही हाल है। ऐसे में दोनों देशों में ज्योतिषयों की भी खूब बन आयी है। भारत में तो ठीक पाकिस्तान में भी कराची और लाहौर के भविष्यवक्ता अपनी बात प्रचारित करवा रहे हैं। वैसे पाकिस्तान धर्म आधारित देश है और उसमें ज्योतिष का कोई स्थान नहीं है पर मनुष्य का मन तो मन ही है जो उसे भटकाता है और जिज्ञासा उत्पन्न करने के साथ उसे शांत करने के लिये प्रेरित भी करता है। बहरहाल युद्धोन्माद के इस वातावरण में ऐसा लगता है कि युद्ध का मतलब कई लोग एक किकेट मैच की तरह समझते हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि प्रचार माध्यम ने क्रिकेट और वास्तविक शो का जिस तरह जंग के रूप में प्रचार करते हैं तो लोगों की सोच में यह भी कोई खेल है। यह इसलिये लगता है कि क्रिकेट और रियल्टी शो पर बात करने वाले इस पर भी बात करते हैं। कोई अगर राजनीति का थोड़ा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति मिल जाता है तो उससे पूछते हैं कि ‘बताओ भई पाकिस्तान से युद्ध प्रारंभ होगा कि नहीं।’

लोगांें में युद्ध के गंभीर परिणाम की जानकारी का अभाव परिलक्षित होता है। उनको लगता है कि दोनों की सेनायें ऐसे ही लड़ेंगी जैसे कि कोई खेल हो। उनको यह पता नहीं कि दोनों के पास दूर दूर तक फैंकने वाली मिसाइलें हैं जो उनके शहरों पर ही नहीं घरों भी पर गिर सकती हैं। इनमें नई पीढ़ी के लोग भी है जो 1971 में पाक्रिस्तान के विरुद्ध फतह का इतिहास पढ़ चुके हैं। यह अलग बात है कि उस फतह पर देश के विद्वान ही एकमत नहीं है। एक पक्ष तो अब भी निरंतर उस विजय के प+क्ष में लिखता है पर दूसरा पक्ष उस पर उंगली भी उठाता है। उनके दो तर्क हैं-एक तो यह कि उस लड़ाई में जिस बंग्लादेश को आजाद कराया गया वह अब उतना ही आतंकवादियों का अड्डा है जितना पाकिस्तान और वहां के नेता और सेना भारत विरोधी वातावरण बनाये रखते हैं। दूसरा यह कि उसके बाद इस देश में महंगाई और भ्रष्टाचार का दौर शुरू हुआ तो वह अब तक जारी है भले ही भारत विकास की राह पर है पर अभी भी उससे निजात नहीं मिली।
फिर एक समस्या और है। वह यह कि अमेरिका के गुणगान करने वाले भी कुछ अति ही कर जाते हैं। अमेरिका ने यह कर दिखाया और वह कर दिखाया। यह ठीक है कि अमेरिका एक संपन्न और शक्तिशाली राष्ट्र है और वहां के सभ्य समाज की अपनी छबि है। भारत से भी उसका कोई सीधा विरोध नहीं है बल्कि नित प्रतिदिन आर्थिक,सामाजिक तथा व्यापारिक विषयों पर दोनेां के संबंध मधुर होते जा रहे हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है पर इस तरह उसका प्रचार करना कि वह अपराजेय राष्ट्र है एक तरह का भ्रम है।
पहली बात तो यह है कि अमेरिका आज तक वियतनाम युद्ध को नहीं भूल पाया जिसे वह हारा था। उसके बाद क्या वह कभी विजयी हुआ है? मित्रगण इस बारे में अफगानिस्तान और इराक का उदाहरण देते हैं। मगर जनाब! वहां अभी तो जंंग चल रही हैं। अफगानिस्तान में तो यह हालत है कि वह पाकिस्तान से आग्रह कर रहा है कि वह भारत से विवाद के चलते अफगानिस्तान सीमा से अपनी सेना न हटाये। अखबार बता रहे हैं कि पाकिस्तान अमेरिका को ब्लैकमेल कर रहा है। फिर इराक में ही देखिये! वहां लोकतांत्रिक सरकार है पर उसके बारे में कहा जाता है कि वह तब तक ही है जब तक अमेरिका की सेना वहां है। लोकतांत्रिक सरकार होते हुए भी अमेरिका राष्ट्रपति के साथ जो बदतमीजी की गयी उसे दुनियां ने देखा। मतलब वहां उस सरकार की कोई कद्र ही नहीं है।

दो जगह अमेरिका एक साथ लड़ रहा है और अभी विजय का निर्णय होना बाकी है। कहने वालों ने यह तर्क दिया कि 9@11 के बाद तो अमेरिका में कोई आतंकी वारदात नहीं हुई पर इराक और अफगानिस्तान में अमेरिका की जो जनधन हानि हो रही है वह कोई कम नहीं है। यकीनन वह कोई आतंकी वारदातों से कम नहीं है। नागरिक सुरक्षित हैं अच्छी बात है पर जो सैनिक मर रहे हैं या घायल हो रहे हैं उनकी पीड़ा झेलने वाले भी अमेरिका में बस रहे हैं। मतलब कोई न कोई तो तकलीफ झेल रहा है।

अमेरिका का समर्थक होना कोई बुरा नहीं है पर क्या उसके अंधसमर्थक बतायेंगे कि आज तक वह कितने परमाणू संपन्न राष्ट्रों से लड़ा है? उसने जापान पर परमाणु बम गिराया था क्योंकि उसके पास नहीं था। वैसे अफगानिस्तान और इराक में अमेरिकी बमबारी देखकर उन दृश्य की तारीफ करने वालों को समझना चाहिये कि वहां अमेरिका से लड़ रहे लोग तकनीकी रूप से सक्षम नहीं थे। अमेरिका पैंसठ हजार किलोमीटर ऊपर से बमबारी कर रहा था और इराक और अफगानिस्तान में लड़ रहे उसके शत्रुओं को उनको गिराने के लिये कोई सक्षम नहीं था। इसलिये चाहे वह जैसे बमबारी कर रहा था। फिर वह जमीन की दृष्टि से उनसे बहुत दूर था इसलिये वह चाहकर भी उस तक नहीं पहुंच सकते थे। कुल मिलाकर वह इकतरफा लड़ाईयां थीं पर भारत और पाकिस्तान में युद्ध हुआ तो इसकी संभावना नहीं है कि वह भी ऐसा रहेगा। अपनी गलतफहमी निकाल दीजिये। पाकिस्तान पर हमला करने का साहस तो अमेरिका के पास भी नहीं है इसलिये वह कूटनीति से काम चलाता है। इकतरफा लड़ाई की संभावना के बावजूद अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में अपने मित्र राष्ट्रों-ब्रिटेन,फ्रंास,ब्रिटेन,जापान तथा अन्य देश- को साथ लिया। उसने अकेले वियतनाम का युद्ध लड़ा जिसे वह हार गया और उसके बाद वह कभी अकेले नहीं लड़ने निकला। अपने यहां एक सुपर स्टार है उनके बारे में उनके एक प्रतिद्वंद्वी रहे एक स्टार ने उसको चुनौती देते हुए कहा था कि‘उसकी कोई भी हिट फिल्म बताईये जो मल्टीस्टार न हो। मैं तो अपने दम पर फिल्में हिट करा चुका हूं।’ कुछ इसी तरह की बात लोग अमेरिका के बारे में भी कहते हैं। यह कोई निराशावादी दृष्टिकोण नहीं है।
परमाणु बम का नाम सुनने के आगे क्या जाना है? उसके बारे में कहा जाता है कि उसकी मार से जो मर गये वह मुक्त हो गये और जो बचे उनकी जिंदगी मौत से बदतर होती है। अभी प्रचार माध्यम युद्धोन्माद का माहौल ऐसे ही बना रहे हैं जैसे कि क्रिकेट और वास्तविक शो का बनाते हैं। जिन लोगों पर देश का जिम्मा है वह काफी सुलझे हुए हैं। उनकी क्षमताओं को कम आंकने वाले स्वयं ही भ्रमित हैं। देश में बुद्धिमान और अनुभवी लोगों की कमी नहीं है। आजकल युद्ध से भी बड़ी चीज है कूटनीति। इस मामले में अपने यहां काफी अनुभवी लोग हैं। देश को तत्काल युद्ध में झौंककर वह ऐसे झमेले में नहीं डाल रहे तो इसके पीछे कोई न कोई वजह है। कूटनीति की मार युद्ध से भी गहरी होती है। पाकिस्तान इस मामले में अधिक दक्ष नहीं समझा जाता। वहां नकारात्मक विचार धारा का बोलबाला है इसलिये उछलकूद कर काम चला लेता है। उसको यह अवसर भी इसलिये मिला क्योंकि अमेरिका ने उसको यह अवसर दिया है। भारत सकारात्मक विचारधारा वाला देश है और इसलिये उसे संयम रखना ही पड़ता है। सीमित सैन्य कार्यवाही की संभावना तो लगती है पर बृहद युद्ध तभी संभव है जब अन्य देश इसके लिये पूरी तरह तैयार हों जिसकी संभावना नगण्य है। वैसे कोई कुछ भी कहे पर समझदार लोगों को इस तरह के युद्धोन्माद में नहीं बहना चाहिये क्योंकि युद्ध कोई क्रिकेट मैच नहीं होता।
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Sunday, December 21, 2008

राजदार पाने के लिए क्यों मचलते हैं-हिन्दी शायरी

आदमी के रूप में सौंप तो
आस्तीन में ही पलते हैं
धोखा देते हैं वही लोग
जो कदम दर कदम साथ चलते हैं
अपना राजदार किसी को न बनाना
ज़माने में अपने ही बदनाम करते हैं
जो तुम अपनी बात दिल में नहीं रखते
तो भला कोई और कैसे रखेगा
इसे कान से उस कान में जाते हुए
शब्द भी अर्थ बदलते हैं
जो कोई और न जाने राज हमारा
यह जानते हुए भी
हम कोई राजदार पाने के लिए क्यों मचलते हैं

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Friday, December 19, 2008

देखने और कहने वाले-हिंदी शायरी

अपनी काबलियत पर न इतना इतराओ
इनाम यहां यूं ही नहीं मिल जाते हैं

भीख मांगने का भी होता है तरीका
लूटने के लिये भी चाहिए सलीका
लोगों की नजरें अब देख नहीं
जब कहीं बवंडर नहीं होता
समंदर भर आंसु बहाकर
जब तक कोई नहीं रोता
काबलियत को कर दो दरकिनार
फरेबी भी बदनाम होकर भी
यहां नाम तो पा जाते हैं
शौहरत होना चाहिये
अच्छा बुरा आदमी भला
लोग कहां देखने आते हैं

अगर नहीं है तुम्हारा झूठ का रास्ता
तो नहीं हो सकता इनाम से वास्ता
अपनी नजरों से न गिरो यह भी कम नहीं
देखने और कहने वालों का क्या
इंसानों की याद्दाश्त होती कमजोर
पल भर को देखकर फिर भूल जाते हैं
भलेमानस इसलिये ही
अपनी राह चले जाते हैं

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Friday, December 12, 2008

नाकाम इंसान की सनद-तीन क्षणिकायें

जीवन में कामयाबी के लिये
शार्टकट(छौटा रास्ता) के लिये
मत भटको यार
भीड़ बहुत है सब जगह
पता नहीं किस रास्ते
फंस जाये अपनी कार
तब सोचते हैं लंबे रास्ते
ही चले होते तो हो जाते पार
..............................
धरती की उम्र से भी छोटी होती हमारी
फिर भी लंबी नजर आती है
जिंदगी में कामयाबी के लिये
छोटा रास्ता ढूंढते हुए
निकल जाती है उमर
पर जिंदगी की गाड़ी वहीं अटकी
नजर आती है
.......................
जिंदगी मे दौलत और शौहरत
पाने के वास्ते
ढूंढते रहे वह छोटे रास्ते
खड़े रहे वहीं का वहीं
नाकाम इंसान की सनद
बढ़ती रही उनके नाम की तरफ
आहिस्ते-आहिस्ते

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Tuesday, December 9, 2008

वह कोई हवा का झोंका था-हिन्दी शायरी

जब वह पास थे तो ऐसा लगता कि
बस हमेशा के लिए साथ हैं
और कभी अलग नहीं होंगे
जब दूर चले गए तो ऐसा लगता है कि
वह कोई हवा का झोंका था तो
जो हमारे पास से गुजर गया
हम उसे गलतफहमी में
अपना समझते होंगे

वादों के तूफानों में कई बार
उन्होने हमें उडाया होगा
अपने लिए सामानों का समंदर
हमसे लेकर जुटाया होगा
हम तो समझते थे दिल का रिश्ता
क्या पता था कि वह दिल के नहीं
हमारी चीजों के कद्रदान होंगे
हमें कितने सपने दिखाते थे
ख़्वाबों के अंबार जुटाते थे
क्या पता था वह हमें
फुर्सत का सामान समझते होंगे
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दिल का दर्द किसे सुनाएँ
कान से सुनते हैं सब
पर दिल के बहरे नजर आयें
जो बोलते हैं जुबान से
पर हमदर्दी के अल्फाज
बोलने की बजाय गूंगे हो जाएं
आंखों से देखते हैं पर
किसी की तकलीफ देखने से
अपने का अंधा बनायें
इससे अच्छा है अपने दर्द
को अकेले में चिल्ला कर
खुद को ही सुनाएं
नहीं तो कोई गीत गुनगुनाएं

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Saturday, December 6, 2008

लगता है जैसे हर आदमी का चरित्र बौना हो-व्यंग्य कविता

वह हमारे दिल से
यूं खेलते रहे जैसे कोई खिलौना हो
हमने पाला था यह भ्रम कि
शायद उनके दिल में हमारे लिये भी कोई कोना हो
मगर कोई उम्मीद नहीं की थी
क्योंकि यह सच भी जानते थे कि
दिखाने के लिये
यहां सभी मोहब्बत करते हैं
अपने मतलब के लिये ही
सब साथ चलते हैं
दिखते हैं कद काठी से कैसे
यह अब सवाल करना है बेकार
पर लगता है जैसे
यहां हर आदमी का चरित्र बौना हो

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Monday, December 1, 2008

अंधेरा और चिराग-हिंदी शायरी

अंधेरे ने चिराग से कहा
‘तू क्यों उस इंसान के लिये
हमारे से लड़ता है
जो सुबह आकाश में आफताब के आते ही
अपने से दूर करता है’
कहा चिराग ने
‘कुदरत ने बनाया है
मुझे तुमसे रात में लड़ने के लिये
सब जगह तुम्हें हटा नहीं सकता
जहां तक है मेरी रोशनी
तेरा घर वहां बन नहीं सकता
जैसे छोटा हूं उतनी ही है मेरी दुनियां
पर अपने कर्तव्य पालन के कारण
बहुत बड़े आफताब के बाद
तुमसे लड़ने में मेरा नाम ही चलता
इस धरती पर कई जगह
आफताब की रोशनी नहीं पहुंचती
वहां भी तेरे साथ मेरी होती जंग
फिर भी तुम्हारे लिये मेरे मन में द्वेष नहीं है
तुम्हारा होना मेरे लिये क्लेश नहीं है
तुम हो इसलिये इंसान को मेरी जरूरत है
आफताब का सहारा कुदरत है
पर तुम नहीं होते तो
हम दोनों का कोई हमारा मोल नहीं समझता
तराजू के एक पलड़ में कोई
चीज तोल नहीं सकता
हमारी रौशनी की पहचान
तुम्हारा अस्तित्व है
लोग भले ही कहें तुम्हारा दुश्मन
पर मैं तो तुम्हें अपना ही दोस्त कहता

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Tuesday, November 25, 2008

अपने जुर्म को अपनी जुबान से इन्साफ कहें-हिन्दी शायरी

रखें हैं उन्होंने जमाने भर का हिसाब
पर अपने पापों का बहता घडा
सब की नज़र से छिपाने के लिए
लोगों के दिल में खौफ करते हैं पैदा
ताकि वह उनका लोहा मानते रहे
दूसरे के जुल्म का भय का शैतान
एक बुत बनाकर रख देते हैं
जिससे डरे लोग
उनकी दगाओं को प्यार समझते रहें

लोगों के जज़्बातों के सहारे चलते हैं
जिनके व्यापार
उनके दिल में कोई जज़्बा नहीं होता
दौलत और शौहरत कमाने वालों के
लिए इन्सान एक शय भर होता
मर जाए या जिन्दा बचे
उनके लिए बीच बाज़ार बिकता रहे
छोटा हो या बड़ा हो इंसान
आँखें हों पर देखे नहीं
कान है पर सुने नहीं
जुबान हैं पर एक शब्द भी बोले नहीं
हाड़मांस का बुत बनकर चलता रहे
इन सौदागरों के ख़ुद के ईमान का पता नहीं
दूसरे का खरीद लेते हैं
जो न बेचे जान उसकी छीन लेते हैं
उन सौदागरों के पेट हैं मोटे
जुबान पर है वफ़ा का नाम
पर नीयत के हैं खोटे
हर आदमी को गुलाम बनाने के लिए
हर तरह के हथियार जमा कर लेते हैं
ज़माने की भलाई का तो नाम है बस
अपने जुर्म को अपनी जुबान से वह इन्साफ कहें
भले लोग उन्हें बताते जो
उनके जुर्म बड़े प्यार से सहें

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Thursday, November 20, 2008

इसलिये उभारते दूसरे के गम-व्यंग्य शायरी

कुछ ख्वाब कुछ हकीकतें
जिंदगी का कारवां
हम बढ़ाये जा रहे यूं ही हम
कभी खुशी तो कभी गम
न किसी की शिकायत करते
न ही किसी की शान में
कभी झूठे कसीदे पढ़ते
खामोशी से चलते जाते अपनी राह हम

फिर भी लोग बैचेन हैं
लगता है कि
इसके घर में कहीं चैन है
दखलांदाजी कर जाते
चाहे जब ताने कस जाते
नहीं रोते शायद किसी के आगे
पी जाते हैंं अपने गम
लोग समझते हैं कि
इसके दुःख दर्द क्यों हैं कम
एक भी आंसू नहीं देखते
क्योंकि जंग लड़ने की आदत है
इसलिये कभी घुटने नहीं टेकते
अपनी आदतों और ख्वाबों के गुलाम
देख नहीं पाते
ढेर सारी कमियों के बाद भी
शायद हमारी आजादी
इसलिये मुफ्त सलाहों की
दवायें यूं ही घर ले आते
यह सोचकर कि बीमारों की
भीड़ में क्यों नहीं शामिल होते हम
हम खामोशी से देखते हैं सब
लोग अपने हालात छिपाने के लिये
मशक्कत तमाम करते हैं
इसलिये उभारते दूसरों के गम

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Sunday, November 9, 2008

जमाने में उसका नाम लेने वाला नहीं बचेगा-हिंदी कविता

वह इतराता रहेगा
बस अपनी बात कहेगा
पर तुम खामोश रहना
अपने शब्द सहजता से रचना
खड़ी रहेगी वह इतिहास में इमारत की तरह
उसका छद्म किला अपने आप ढहेगा

वह आतंक के शब्द रचेगा
बहने लगे खून कहीं
ऐसी उम्मीद करेगा
अपने काले कारनामों के लिये
सफेदपोश मुखौटे तलाश करेगा
तुम सहज और सरल शब्द लिखना
नहीं जरूरत होगी तुम्हें
किसी दूसरे के उधार चेहरे की
कभी न कभी उसके चेहरे पर ही
पुत जायेगी कालिख
कब तक वह चेहरे बदलेगा

वह लगायेगा शांति के नारे
पर चीख मचाता शोर करेगा
अमन और तसल्ली देने का दावा करता
बिखेर देगा अशांति इस जहां में
इसलिये उसका नाम भी चमकेगा
क्योंकि शोर की ताकत होती है ज्यादा
पर उम्र उसकी कम होती है
इसलिये भूल जायेगा जमाना नाम उसका
फिर कौन उसकी कद्र करेगा
तुम लिखना शांति के शब्द
प्रेम का प्रचार करना
जीवन जिससे महकता हो
उसे फूल जैसी रचना का सृजन करना
बनी बनाई इमारतों को ढहाना
बहुत आसान होता है
उसकी आवाज गूंजती है जोर से
इसलिये जमाने की नजर बहुत जल्दी जाती है
फिर फेर भी लेते हैं नजरे लोग उतनी ही जल्दी
जब इमारत का टूटा ढेर नजर आता है
तुम रखना एक एक ईंट अपने हाथ से
बनाना अपनी नयी इमारत
तुम्हारे बदने से निकलते पसीने पर
नहीं जायेगी किसी की नजर
कभी लगेगी भूख तो कभी होगा प्यास का कहर
पर बन जायेगी इमारत रचना की
कीर्ति स्तंभ पर तुम्हारा ही नाम गढ़ेगा

जिसे चमकते देखकर हैरान हुए थे तुम
जिस पर जमीं थी नजर जमाने की
चमकता था नाम जिसका आकाश में
उस विध्वंस और अशांति पैदा करने वाले
शख्स को याद कर तुम सोचोगे
पर जमाने में उसका नाम लेने वाला नहीं बचेगा

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Thursday, November 6, 2008

अपने आप को ही गरीब पाओगे-व्यंग्य कविता


खूब खेलो और नृत्य करो
अभिनय करते हुए लोगों का दिल बहलाओ
जमकर कमाओ पैसा तो महान बन जाओगे
लकड़ी और प्लस्टिक के खिलौनो से
बचपन में खेले लोग
बड़े होकर हांड़मांस के खिलौनो से
खेलने के आदी हो जाते हैं
तुम उनके साथ जमकर खेलो
पर अहसास दिलाओ
उनको स्वयं खेलने का
तो तुम इस जिदंगी के खेल में जीत जाओगे

काल्पनिक कहानियों के पात्र बन जाओ
लोगों को भ्रम में सच दिखाओ
तो तुम उनके इष्ट बन जाओगे
लोगों का चाहिये हर पल कुछ नया
दौलत और शौहरत की इस दौड़ में
जुटे हैं सभी लोग
तुम दिल बहलाकर बटोर लो दौलत
बिना दौड़े किसी दौड़ में
पर्दे पर कई बार विजेता बन जाओगे

सच से दूर रहना सीख लो
खुद को ही दो धोखा
तभी दूसरे को भी दे पाओगे
हां, यह जरूरी होगा
क्योंकि सत्य कभी बदल नहीं सकता
भ्रम के रूप तो पल पल बदल सकते हैं
चमकती रौशनी कितनी भी तेज हो
सूर्य जैसी तो नहीं हो सकती
कितना भी सुंदर सूरत हो
चांद जैसी सीरत नहीं हो सकती
दरियादिल तो दिखने के होते
समंदर जैसी गहराई उनमें नहीं हो सकती
कभी इतिहास के नायकों जैसा
बनने का ख्वाब नहीं देखना
उनकी हकीकत भी वैसी बयान नहीं होती
फिर पूरा जमाना करने लगा है नकल मेे ही
असल जैसा विश्वास
तब असली नायक होने की सोची तो पछताओगे

तुम करते रहो स्वांग
खुद को भी यकीन दिला दो कि
तुम ही हो वाकई महान
अगर नहीं कर सकते तो
आम इंसान बन जाओ
देखो सच को अपनी आंखों से
महसूस करो अपनी ताकत को
जमाना तुम्हें चाहे, यह उम्मीद छोड़ दो
हंसना सीख लो अपनी हालातों पर
जमाने को बताना छोड़ दो
वह हंस सकता है मु्फ्त में तुम पर
अगर मौका दिया हंसने का
उसे अपना दर्द बताकर
तब अपने आप को ही गरीब पाओगे

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Monday, November 3, 2008

मुन्ने के बापू ने भी ऐसा ही लिखा था प्रेमपत्र-हास्य कविता

आवारा आशिक देखता था
उसे रोज गाडी में आते जाते
आ गया दिल तो उसने लिख कर प्रेम प्रस्ताव
और रास्ते में थमा दिया
"प्रिये रोज तुम्हें आते जाते देखता हूँ
तुम पहली हो जिस पर दिल आया
कितना सुन्दर तुम्हारा चेहरा है
क्या लहराते काले लम्बे बाल हैं
तुम्हारी चाल है हाथी की तरह मतवाली
मेरा दिल भी है खाली
इसलिए यह प्रेम प्रस्ताव तुमको दिया"

गाडी पर चलती लडकी भौचक्क रह गयी
किसी तरह संभली
पत्र हाथ में लेकर पढा
फिर गाडी पर बैठकर ही लिख जवाब लिख दिया
"गाडी पर हेलमेट पहनकर चलती हूँ
तुमने मेरे चेहरे के बारे में कैसा अनुमान कर लिया
बालों में लगाती हूँ रंग जो है लाल
घर से जाती हूँ इसी गाडी पर
अपने बच्चे को स्कूल से वापस लाने
वरना कभी बाहर पैदल नहीं चलती
गाडी की चाल हो सकती है मतवाली
मेरी कैसे समझ लिया
पर मुझे याद आया मुन्ने के बापू ने भी
भेजा था ऐसे ही प्रेमपत्र
जब मैं कालिज जाती थी
उस समय नहीं समझी थी
तब भी हेलमेट पहनाकर ऐसी ही गाडी पर जाती
आज पूछूंगी घर आते ही
उन्होंने कैसे मेरी सुन्दरता का वर्णन कर दिया
होता है झगडा तो परवाह नहीं
अच्छा हुआ तुमने मुझे याद दिला दिया
अंधी थी उसके प्यार में
मैंने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया"

लड़के ने उत्तर देखकर अपना सर पीट लिया
फिर जो देखा उसका चेहरा
तो बहुत खुश हो गया
वह उसके उस दोस्त की पत्नी थी
लिखवा गया था ऐसा ही प्रेम पत्र पर
जिसने शादी की बाद उसके लक्षणों को देखते हुए
कभी घर में नहीं घुसने दिया
इस तरह उसने बदला लिया

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