Saturday, December 6, 2008

लगता है जैसे हर आदमी का चरित्र बौना हो-व्यंग्य कविता

वह हमारे दिल से
यूं खेलते रहे जैसे कोई खिलौना हो
हमने पाला था यह भ्रम कि
शायद उनके दिल में हमारे लिये भी कोई कोना हो
मगर कोई उम्मीद नहीं की थी
क्योंकि यह सच भी जानते थे कि
दिखाने के लिये
यहां सभी मोहब्बत करते हैं
अपने मतलब के लिये ही
सब साथ चलते हैं
दिखते हैं कद काठी से कैसे
यह अब सवाल करना है बेकार
पर लगता है जैसे
यहां हर आदमी का चरित्र बौना हो

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