उनके घर में
ज्ञान की बड़ी
बड़ी किताबें
कीमती सामान की
तरह पड़ी हैं।
भक्त का चोला
ओढ़ा कभी
अब उनकी तस्वीर
शिष्यों के घर
में दीवारों पर जड़ी हैं।
कभी वह स्वयं
झुकाते थे
सर्वशक्तिमान के
दरबार में
अब उनके दरवाजे
पर
भक्तों की भीड़
खड़ी है।
कहें दीपक बापू
अप्रकट ब्रह्म
अपने भक्त के
हृदय में ही
प्रकट हो जाता
है,
छद्म भक्ति में
लगे पाखंडियों को
स्वयं ही
सर्वशक्तिमान का
अवतार होने का
मोह हो जाता है,
सत्य की दिखाते
रूप
जपाते अपना सभी
से
घर में माया बड़े
रूप में
हमेशा उनके साथ
सहचरिणी की तरह
खड़ी है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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