Tuesday, April 29, 2014

आम आदमी और राजमहल-हिन्दी व्यंग्य कविता(aam admi aur rajmahal-hindi vyangya kavita)




इतिहास गवाह है सिंहासन के लिये हमेशा जंग होती रही है,
बड़े योद्धाओं के जीत दर्ज कर पहना ताज क्रांति के नाम पर
यह अलग बात है जनता अपने चेहरे का रंग खोती रही है।
कहें दीपक बापू आम इंसान लड़ता रहा हमेशा
अपने लिये रोटी जुटाने के वास्ते,
मदद मांगने कभी नहीं गया वह राजमहल के रास्ते,
घर पर अपना आसन लगाकर बैठा रहा
उसे मालुम है कोई नहीं बनेगा हमदर्द
वह लोग तो कतई नहीं
जिनकी शाही पालकी
उसकी भुजाओं की मेहनत ढोती रही है
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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Sunday, April 20, 2014

वातानुकूलन यंत्र के शिकार विरुद्ध पसीने के वीर-हिन्दी कविता(vatanukulan ke shikar aur paseene ke veer-hindi poem)



एक इंसान वह हैं जो कृत्रिम वातानुकूलन यंत्र से सजे
महलों में लेते सांस
रास्ते पर वाहनों में सफर करते हुए भी
जिंदगी में बदलाव की हवा से कांपते हैं,
दूसरी तरफ वह मेहनतकश भी हैं जो
गर्मी की भरी दोपहरिया में
खेत खलिहान और चौराहों पर
पसीना बहाते हुए अपनी तकलीफों से दिखते लापरवाह
चाहे हांफते हैं।
कहें दीपक बापू उन अमीरों को
अपना दर्द सुनाने से कोई फायदा नहीं है,
कांपते जिनके बीमार दिल
मदद देना उनका कायदा नहीं है,
सच यह है कि जंग में खड़े रहते हैं वह यकीन के साथ,
पसीना बहाने में नही डरते जिनके हाथ,
उनकी सच्ची हमदर्दी की वीरता को हम भांपते हैं।
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Sunday, April 13, 2014

बादशाहों के खेल -हिन्दी व्यंग्य कविता(badshahon ke khel nirale-hindi satire poem)



बादशाहों के खेल होते हैं हमेशा एकदम निराले,
छवि बहादुर की दिखाते अपने महलों पर लगाते बड़े ताले।
गरीबों को देते सलाह कम रोटी खाने की,
बात नहीं करते अन्न से भरे अपने रसोईखाने की,
मजदूरों के पसीने से पैदा पैसे से भरते खजाना,
फिजूलखर्ची पर देते हैं अपनी जनता को ताना,
उनकी दरबारों में चलती है हमेशा सिहांसन के लिये जंग,
खुश होते है चढ़ता है जब उन पर चढ़ता चाटुकारिता का रंग,
कहें दीपक बापू इस धरती का कोई इंसान खास नहीं होता
इतिहास गवाह है अपनी आदतों के सामनें सभी ने हथियार डाले।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Tuesday, April 8, 2014

रामनवमी पर विशेष लेख-भगवान राम के चरित्र का वर्णन और श्रवण दोनों ही आनंददायक(special hindi editorial on ramnawami or ramnavami-bhagwan ram ke charatra ka vanran aur shravan donon hi anand dayak)



      आज रामनवमी का पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास मनाया जा रहा है। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की दृष्टि से भगवान श्रीराम के लिपबद्ध चरित्र का अत्यंत महत्व है। जब हम भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप की भी चर्चा करते हैं तो उस दौरान भी कहीं न कहीं  मनुष्य हृदय में श्रीराम की कल्पना उपस्थित रहती है। भगवान श्रीराम तथा श्रीकृष्ण को भगवान श्रीविष्णु का अवतार माना जाता है। यह दृष्टिकोण दोनों के चरित्र का वर्णन करने वाले महर्षियों  का है जिसे भक्त सहजता से स्वीकार भी करते हैं पर दोनों ने अपने श्रीमुख से कभी ऐसा दावा नहीं किया।  बहरहाल एक बात तय है कि मनुष्य रूप में भगवान श्री राम तथा श्रीकृष्ण का चरित्र ही ऐसा है कि उनके भगवान होने की स्वाभाविक अनुभूति उस हर हृदय में होती है जिसके अंदर अध्यात्मिक दर्शन के प्रति रुचि है।
      मूलतः भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र का आधार महर्षि बाल्मीकि की रचनाओं से जुड़ा है जो कि संस्कृत में है। महर्षि तुलसीदास ने भगवान श्रीराम के प्रति अपनी पवित्र भक्ति के कारण श्रीरामचरित मानस की रचना की।  जनभाषा में होने के कारण यह पूरे भारत में उनकी रचना महान ग्रंथ बन गयी।  सच बात तो यह है कि आधुनिक समय में भगवान श्रीराम के चरित्र में नायकत्व जोड़ने का संत तुलसीदास ने ही किया है।  श्रीराम के चरित्र को अपने मानस की तीक्ष्ण दृष्टि से देखने के बाद तुलसीदास ने उसे जो शब्द रूप दिया उससे स्वयं ही भगवत्रूप प्राप्त किया। यही वजह है कि आज उनका नाम पूरे विश्व में जाना जाता है।  इससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि श्रीराम चरित्र की चर्चा करने तथा सुनने से मनुष्य के हृदय में जो अध्यात्मिकता का रस उत्पन्न होता है उससे उसके मन के विकार जलकर नष्ट हो जाते हैं और वह एक दिव्य रूप को प्राप्त होता है

संत तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में कहा है कि
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पुलक वाटिका बाग वन सुख सुविहंग विहारु।
माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-रामकथा सुनने में मनुष्य की देह के अंतर्गत बहने वाली रक्त धारा में रोमांच उत्पन्न होता है। वही पक्षियों का विहार, वाटिका और उद्यान और वन है। निर्मल मन ही माली है जो प्रेमरूपी जल से सुन्दर  नेत्रों से उनको सीचंता है।
जे गावहि यह चरित सैंभारे।
तेइ एहि ताल चतुर लखवारे।।
सदा सुनहिं सादर नर नारी।
तेइ सुरवर मानस अधिकारी।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-जो लोग भगवान श्रीराम का चरित्र सावधानी से करते हैं वे ही इस संसार रूप तालाब के चतुर रखवाले हैं। जो इसे आदरपूर्वक इसे सुनते हैं वे ही इस सुंदर मानस के आधिकारी और उत्तम देवता है।

      भगवान श्रीराम की साकार तथा निराकार दोनों प्रकार से भक्ति की जाती है। निराकार भक्त उनके नाम के स्मरण को ही इस भवसागर से तर जाने मार्ग मानते हैं तो साकार उपासक इस अवसर पर उनके मंदिरों में जाकर श्रद्धा से मत्था टेकने और प्रसाद चढ़ाने की प्रक्रिया से अपने हृदय में आनंद की धारा लाने का प्रयास करते हैं।  भगवान श्रीराम का चरित्र का वर्णन करना और सुनना ही अपने आप में आनंददायी होता है।  मुख्य बात यह है कि उनकी साकार तथा निराकार दोनों प्रकार की भक्ति निष्काम ही होती है जिसे हृदय में एक सहज भाव की अनुभूति होती हैं। जीवन में हर समय ही मर्यादा का पालन करने वाले भगवान श्रीराम का चरित्र अत्यंत प्रेरणादायी है। इतना ही नहीं रावण जैसे महाबली के साथ उन्होंने युद्ध कर उसे परास्त कर संसार को यह संदेश दिया कि मनुष्य चाहे कितना धनी और प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह अपने नैतिक आचरण पथ से भ्रष्ट होता है तो वह पतन की तरफ ही जाता है। एक न एक दिन दृष्टता को प्राप्त शक्तिशाली मनुष्य को  चुनौती देने वाला आदर्श पुरुष सामने आ ही जाता है।
      रामनवमी के इस पावन पर्व पर पाठकों तथा लेखक मित्रों को बधाई। यह हमारी शुभकामनायें हैं कि भगवान श्रीराम कृपा से उनका जीवन मंगलमय हो। जयश्रीराम, जयश्रीकृष्ण।


लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Monday, March 31, 2014

आदर्श के लिये युद्ध-हिन्दी व्यंग्य कविता(adarssh ke liye yuddh)



जिनसे उम्मीद होती मौके पर सहारे की
वही ताना देकर हैरान करने लगें,
क्या कहें उनको
ढांढस देना चाहिये जिनको जिंदगी की जंग में
वही हमारी हालातों को देखकर डरने लगें।
कहें दीपक बापू ऊंचे महलों में जो रहते हैं,
महंगे वाहनों में सड़क पर साहबों की तरह बहते हैं,
दौलतमंद है,
मगर देह से मंद है,
मन उनके बंद हैं,
आदर्श के लिये युद्ध वह क्या लड़ेंगे
अपना घर बचाने के लिये
जो अपने से ताकतवर के यहां पानी भरने लगें।
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Thursday, March 27, 2014

सिंहासन का स्वाद-हिन्दी क्षणिका(sinhasan ka swad-hindi short poem)



सिंहासन का स्वाद जिसने एक बार चखा
वह विलासिता का आदी हो जाता है,
दिन दरबार में बजाता चैन की बंसी
रात को राजमहल में निद्रा वासी हो जाता है।
कहें दीपक बापू दुनियां चल रही भगवान भरोसे
बादशाह अपने फरिश्ते होने की गलतफहमी मे रहते
आम आदमी अपने कड़वे सच में भी
भगवान दरबार में जाकर भक्ति का आनंद उठाता है।
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Sunday, March 23, 2014

मजेदार खेल-हिन्दी व्यंग्य कविता(mazedar khel-hindi vyangya kavita or satire poem)





एक बार सिरमौर बने वह
स्वय को सदाबहार नायक समझने लगे,
पीछे भीड़ में खड़े लोगों को अपनी पालतु भेड़ कहने लगे।
ऊंचे ओहदे पर बैठकर जिन्होंने छोटे इंसानों के सिर पर हाथ फेरा,
वहां से गिरने के भय से उनके दिल में पड़ जाता चिंता का घेरा,
जहान  की भलाई का देकर नारा जिन्होंने अपने महल बनाये,
सोचते हैं कि ऊंचे पद सर्वशक्तिमान ने उनके लिये ही रचाये,
जिनके साथ किया जिंदगी का सफर उनको बेवफा नज़र आते हैं,
अपनी जुबान संजीदा होकर अपनी नेकनीयती में देवत्व जताते हैं,
कहें दीपक बापू लोकतंत्र का यह खेल होता है तब  मजेदार
ऊंचे ओहदे के अहम में सोते लोग खतरा देखकर जब नींद से जगे।
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Saturday, March 15, 2014

होली के अवसर पर हृदय की सफाई-हिन्दी हास्य कविता(holi ke awasar par hridya ki safai-hindi hasya kavita)



घर पर आया फंदेबाज और बोला
‘‘दीपक बापू इस बार देश में
बढ़ गयी है बहुत महंगाई,
गरीब तो टूटा है
मध्यम वर्ग वाला भी हो गया गरीब
हमें रंग न खेलकर
समाज सेवा का व्रत लेना है
यही सोच मेरे मन में आई,
आप तो फ्लाप कवि हो
पिटती हैं आपकी अंतर्जाल पर कविता
इसलिये कुछ नया करो
समाज सेवा के लिये बनाओ संस्था
करो आमजन की भलाई।’’
सुनकर हंसे और बोले दीपक बापू
‘‘लगता है होली का मजाक करने आये हो,
हमारे फ्लाप होने का सच
हमारे सामने धरने आये हो,
हमारी पुरानी टोपी
फटी धोती
और पैबंद लगा कुर्ता देखकर
तुम्हें परेशानी होती है,
की नहीं कभी कविता से कमाई
यह देखकर तुम्हारी नीयत पानी पानी होती है,
तुम जानते हो अच्छी तरह
नये ज़माने में समाज सेवा भी
एक तरह से हो गयी धंधा,
लाचारों के नाम पर सजाओ दुकान
कभी हवाई जहाज में करो दौरा
कभी कार में करो खरीददारी
बांट सको तो ठीक
नही हैं अपने काम में लाओ चंदा,
पहले प्रचार में प्रसिद्धि,
फिर उसके नकदीकरण में दिखाओ अपनी सिद्धि,
हमसे यह नहीं हो पायेगा,
पराये धन पर मजे करना हमें ही सतायेगा,
वैसे भी होली हम क्या मनायेंगे,
हालातों कर दिये सभी रंग लगते हैं फीके
किसी पर क्या लगायेंगे,
करेंगे कुछ चिंत्तन
कुछ रचेंगे हास्य कवितायें
देश की तो नहीं कर सकते
अपनी हृदय की ही करेंगे सफाई।
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Monday, March 10, 2014

रहीम दर्शन पर आधारित चिंत्तन लेख-धनी समाज में समरसता का भाव स्थापित करने का प्रयास करें(rahim darshan par aadhari chinntan lekh-dhani smaj mein samrasta ka bhav sthapit karna ka prayas kaen)



      हमारे देश में कुछ उत्साही बुद्धिमान तथा समाज सेवक विदेशी विचारधाराओं के सिद्धांत उधार लेकर देश में गरीबों के उद्धार के लिये अभियान छेड़ने का स्वांग रचते हैं।  आमतौर से यह माना जाता है कि भारत में केवल भक्ति करने वाले उन विद्वानों की प्रसिद्ध मिली है जिन्होंने परमात्मा का स्मरण करने का लोगों का संदेश दिया है। उन्होंने अपने समाज की स्थिति से कोई मतलब नहीं रखा। यह सोच गलत है।  हमारे अध्यात्मिक विद्वानों ने हमेशा ही समाज में कमजोर, गरीब तथा बेबस की सहायता के लिये लोगों को प्रेरित किया है।  कार्ल मार्क्स को मजदूरी का मसीहा बताकर भारत में प्रचार करने वाले कुछ उत्साही विद्वान यह मानते है कि पूंजीवाद नामक दैत्य की खोज उन्होंने ही की थी जिसे नष्ट करने के सूत्र भी बताये।  ऐसा नहीं है क्योंकि  हमारे देश में तो अध्यात्मिक विद्वान न केवल तत्वज्ञान का संदेश देने के साथ ही  समाज में समरसता का भाव बनाये रखने का विचार तथा योजना भी बताते रहे हैं। उनका मानना रहा है कि जब तक आप अपने आसपास सहजता का वातावरण नहीं बनाये रखते तब तक स्वयं भी खुश नहीं रह सकते।
कविवर रहीम कहते हैं कि
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बढ़त रहीम धनाढय धन, धनौ धनी को जाई।
घटैं बढ़े वाको कहा, भीख मांगि जो खाई।
     हिन्दी में भावार्थ-धनी का धन बढ़ता ही जाता है और जो श्रमिक उसका स्वामी है वह उसे पा नहीं सकता।  जो व्यक्ति भीख मांग कर जीवन गुजारता है उसके लिये धन घटने या बढ़ने का कोई अर्थ नहीं है।
      हमारे अध्यात्मिक विद्वान मानते हैं कि धन का असली स्वामी तो उसका सृजक श्रमिक ही है।  वह यह भी मानते हैं कि धनी बीच में अपना हाथ डालकर धन की नदी से गरीब के घर जाती धारा से अपना अधिक हिस्सा मार लेता है। इतना ही नहीं हमारे अध्यात्मिक चिंत्तकों ने धर्म के नाम पर रचे जा रहे उस पाखंड पर भी अपनी वक्र दृष्टि डाली है जिससे गरीबों में मसीहाई छवि बनाने वाले कथित संत और महात्मा धनिकों की रक्षा का काम करते हैं। वह गरीबों और मजदूरों को धार्मिक कथाओं में व्यस्त रखकर उन्हें अपने उपदेशों से भटकाते हैं।  स्वयं मोह और माया के चक्कर में रहते हैं और लोगों से कहते हैं कि दूर रहो।  इस तरह वह समाज में धनिकों के लिये संभावित विद्रोह को रोके रहते हैं।
      कहने का अभिप्राय यह है कि गरीब, बेबस, लाचार और अस्वस्थ लोगों की सहायता करने का विचार हमारे देश के अध्यात्मिक विद्वानों का भी रहा है।  यह कहना व्यर्थ है कि भारत में बाहर से आये कथित सभ्य लोगों ने यहा कोई वैचारिक क्रांति की है। हमें समाज में समरसता का भाव अपने पंरपरागत ढंग से दान, सहायता अथवा उपहार देकर करने का प्रयास करना चाहिये न कि विदेशी विचारधाराओं का मुंह ताकना चाहिये।

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Monday, March 3, 2014

सामान और दिल के रिश्ते-हिन्दी व्यंग्य कविता(saman aur dil ke rishtey-hindi vyangya kavita)



देश के विकास का हमने अब रिश्ता महंगाई से जोड़ लिया है,
घर के रिश्तों के दाम का आंकलन भी बाज़ार पर छोड़ दिया है।
ईंधन के दाम हर रोज बढ़ने का समाचार  आता है
मन में चिंताओं का उठता धुंआ ख्याल पर अंधेरा छा जाता है,
शादी हो या गमी अपनी इज्जत बढ़ाने के लिये लोग खाना बांटते,
कुछ लेते कर्जा कुछ अपनी तिजोरियों में रुपये छांटते,
तत्वज्ञान बघारने वाले बहुत है मगर पाखंड कोई नहीं छोड़ता,
रस्म निभाने के लिये जिंदगी गंवाकर हर कोई दौलत जोड़ता,
कहें दीपक बापू दिन-ब-दिन समाज सिकुड़ रहा है
सामानों की चाहतों ने इंसान के दिल के रिश्तों को तोड़ दिया है।
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Monday, February 24, 2014

चतुर बेच रहे अपनी चाल-हिन्दी व्यंग्य कविता(chature bech rahe apni chal-hindi vyangya kavita


खेल भी नाटक की तरह पहले पटकथा लिखकर होते हैं,
जुआ और सट्टे के दाव पर लोग कभी हसंते कभी रोते  हैं,
अभिनेता और खिलाड़ी में नहीं रह गया अंतर,
सभी पैसे के लिये अदायें बेचते जपते हैं मनोरंजन मंतर,
गेंद पर आंकड़ा बढ़ेगा कि विकेट गिरेगा पहले ही तय है,
फुटबाल हो या टेनिस हर प्रहार बिकने की शय है,
मिल बैठते हैं खिलाड़ी और अभिनेता नायकों की तरह,
दर्शकों के भगवान धनवानों के गीत गाते गायकों की तरह,
कहें दीपक बापू पर्दे पर चल रहे हर दृश्य पर होता शक
चतुर बेचते अपनी चाल मूर्ख भ्रम को सच समझ रहे होते हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Sunday, February 16, 2014

कुर्सी के खेल में शहादत-हिन्दी व्यंग्य कविता(kursi ke khel mein shahadat-hindi vyangya kavita)




कुर्सी के खेल में शहादत भी कभी रंग लाती है,
ज़माने की हमदर्दी बादशाहत भी संग लाती है,
सियासत की चाल शतरंज के खेल जैसी होती,
घोड़ा चले ढाई कदम बादशाह की ताकत ऐसी नहीं होती,
सीधे चलता पैदल वार तिरछा कर वजीर बन जाये,
मात दे बादशाह को तो बाजी एक नज़ीर बन जाये,
ऊंट की तिरछी तो हाथी की सीधी चाल करती हैरान,
हुकुमत का खेल पसंद करते फरिश्ते हों या शैतान,
कहें दीपक बापू बेबस और बेजान राजा बुत जैसा है
उसकी किस्मत की कुंजी मुहरों की चालों में फंसी होती।
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