आज रामनवमी का पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास
मनाया जा रहा है। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की दृष्टि से भगवान श्रीराम के लिपबद्ध
चरित्र का अत्यंत महत्व है। जब हम भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप की भी चर्चा करते हैं
तो उस दौरान भी कहीं न कहीं मनुष्य हृदय
में श्रीराम की कल्पना उपस्थित रहती है। भगवान श्रीराम तथा श्रीकृष्ण को भगवान
श्रीविष्णु का अवतार माना जाता है। यह दृष्टिकोण दोनों के चरित्र का वर्णन करने
वाले महर्षियों का है जिसे भक्त सहजता से
स्वीकार भी करते हैं पर दोनों ने अपने श्रीमुख से कभी ऐसा दावा नहीं किया। बहरहाल एक बात तय है कि मनुष्य रूप में भगवान
श्री राम तथा श्रीकृष्ण का चरित्र ही ऐसा है कि उनके भगवान होने की स्वाभाविक
अनुभूति उस हर हृदय में होती है जिसके अंदर अध्यात्मिक दर्शन के प्रति रुचि है।
मूलतः भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र का आधार
महर्षि बाल्मीकि की रचनाओं से जुड़ा है जो कि संस्कृत में है। महर्षि तुलसीदास ने
भगवान श्रीराम के प्रति अपनी पवित्र भक्ति के कारण श्रीरामचरित मानस की रचना
की। जनभाषा में होने के कारण यह पूरे भारत
में उनकी रचना महान ग्रंथ बन गयी। सच बात
तो यह है कि आधुनिक समय में भगवान श्रीराम के चरित्र में नायकत्व जोड़ने का संत
तुलसीदास ने ही किया है। श्रीराम के
चरित्र को अपने मानस की तीक्ष्ण दृष्टि से देखने के बाद तुलसीदास ने उसे जो शब्द
रूप दिया उससे स्वयं ही भगवत्रूप प्राप्त किया। यही वजह है कि आज उनका नाम पूरे
विश्व में जाना जाता है। इससे एक बात तो
स्पष्ट होती है कि श्रीराम चरित्र की चर्चा करने तथा सुनने से मनुष्य के हृदय में
जो अध्यात्मिकता का रस उत्पन्न होता है उससे उसके मन के विकार जलकर नष्ट हो जाते
हैं और वह एक दिव्य रूप को प्राप्त होता है
संत तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस में कहा है कि----------------पुलक वाटिका बाग वन सुख सुविहंग विहारु।माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु।।सामान्य हिन्दी में भावार्थ-रामकथा सुनने में मनुष्य की देह के अंतर्गत बहने वाली रक्त धारा में रोमांच उत्पन्न होता है। वही पक्षियों का विहार, वाटिका और उद्यान और वन है। निर्मल मन ही माली है जो प्रेमरूपी जल से सुन्दर नेत्रों से उनको सीचंता है।जे गावहि यह चरित सैंभारे।तेइ एहि ताल चतुर लखवारे।।सदा सुनहिं सादर नर नारी।तेइ सुरवर मानस अधिकारी।।सामान्य हिन्दी में भावार्थ-जो लोग भगवान श्रीराम का चरित्र सावधानी से करते हैं वे ही इस संसार रूप तालाब के चतुर रखवाले हैं। जो इसे आदरपूर्वक इसे सुनते हैं वे ही इस सुंदर मानस के आधिकारी और उत्तम देवता है।
भगवान श्रीराम की साकार तथा निराकार दोनों
प्रकार से भक्ति की जाती है। निराकार भक्त उनके नाम के स्मरण को ही इस भवसागर से
तर जाने मार्ग मानते हैं तो साकार उपासक इस अवसर पर उनके मंदिरों में जाकर श्रद्धा
से मत्था टेकने और प्रसाद चढ़ाने की प्रक्रिया से अपने हृदय में आनंद की धारा लाने
का प्रयास करते हैं। भगवान श्रीराम का
चरित्र का वर्णन करना और सुनना ही अपने आप में आनंददायी होता है। मुख्य बात यह है कि उनकी साकार तथा निराकार
दोनों प्रकार की भक्ति निष्काम ही होती है जिसे हृदय में एक सहज भाव की अनुभूति
होती हैं। जीवन में हर समय ही मर्यादा का पालन करने वाले भगवान श्रीराम का चरित्र
अत्यंत प्रेरणादायी है। इतना ही नहीं रावण जैसे महाबली के साथ उन्होंने युद्ध कर
उसे परास्त कर संसार को यह संदेश दिया कि मनुष्य चाहे कितना धनी और प्रभावशाली
क्यों न हो अगर वह अपने नैतिक आचरण पथ से भ्रष्ट होता है तो वह पतन की तरफ ही जाता
है। एक न एक दिन दृष्टता को प्राप्त शक्तिशाली मनुष्य को चुनौती देने वाला आदर्श पुरुष सामने आ ही जाता
है।
रामनवमी के इस पावन पर्व पर पाठकों तथा लेखक
मित्रों को बधाई। यह हमारी शुभकामनायें हैं कि भगवान श्रीराम कृपा से उनका जीवन
मंगलमय हो। जयश्रीराम, जयश्रीकृष्ण।
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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