Monday, February 24, 2014

चतुर बेच रहे अपनी चाल-हिन्दी व्यंग्य कविता(chature bech rahe apni chal-hindi vyangya kavita


खेल भी नाटक की तरह पहले पटकथा लिखकर होते हैं,
जुआ और सट्टे के दाव पर लोग कभी हसंते कभी रोते  हैं,
अभिनेता और खिलाड़ी में नहीं रह गया अंतर,
सभी पैसे के लिये अदायें बेचते जपते हैं मनोरंजन मंतर,
गेंद पर आंकड़ा बढ़ेगा कि विकेट गिरेगा पहले ही तय है,
फुटबाल हो या टेनिस हर प्रहार बिकने की शय है,
मिल बैठते हैं खिलाड़ी और अभिनेता नायकों की तरह,
दर्शकों के भगवान धनवानों के गीत गाते गायकों की तरह,
कहें दीपक बापू पर्दे पर चल रहे हर दृश्य पर होता शक
चतुर बेचते अपनी चाल मूर्ख भ्रम को सच समझ रहे होते हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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