कुर्सी के खेल में शहादत भी कभी रंग लाती है,
ज़माने की हमदर्दी बादशाहत भी संग लाती है,
सियासत की चाल शतरंज के खेल जैसी होती,
घोड़ा चले ढाई कदम बादशाह की ताकत ऐसी नहीं होती,
सीधे चलता पैदल वार तिरछा कर वजीर बन जाये,
मात दे बादशाह को तो बाजी एक नज़ीर बन जाये,
ऊंट की तिरछी तो हाथी की सीधी चाल करती हैरान,
हुकुमत का खेल पसंद करते फरिश्ते हों या शैतान,
कहें दीपक बापू बेबस और बेजान राजा बुत जैसा है
उसकी किस्मत की कुंजी मुहरों की चालों में फंसी होती।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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