अनेक बार फुर्सत के क्षण मे जब इस लेखक की अपने अंतर्जाल पर स्वरचित पाठों पर दृष्टि जाती है
तो पता चलता है कि श्रीमद्भागवत गीता से संबद्ध सामग्री अन्य की तुलना में ज्यादा
पाठकों को प्रभावित करती है। अनेक लोग यह दावा करते हैं कि वह अपनी धार्मिक
प्रवृत्ति के कारण श्रीमद्भागवत गीता के प्रति अधिक संवदेनशील है। अनेक लोग कहते हैं कि श्रीमद्भागवत गीता में
उनकी आस्था है। अनेक पेशेवर धार्मिक
बुद्धिमान श्रीमद्भागवत गीता के संदेश सुनाकर यह प्रमाणित करते हैं कि वह समाज को
सुधारने के योग्य हैं।
एक योग साधक तथा श्रीगीता का नियमित पाठक होने के कारण इस लेखक ने अंतर्जाल
पर अनेक अध्यात्मिक पाठ लिखे है पर
श्रीगीता के महत्व का बखान करने केे लिये शब्द पर्याप्त नही होते। हमारा मानना है कि श्रीगीता के संदेश जो मर्म में स्थापित कर लेगा
वह कभी उसके प्रति संवेदनशील नहीं होगा।
श्रीगीता जीवन जीने की कला सिखाने का वह ग्रंथ है जो व्यक्ति को मार्मिक
नहीं कार्मिक बनाती है। भावनाओं में बहने
की बजाय सांसरिक विषयों के सागर से
भागने की बजाय उसमें होती उथल पुथल में स्थिर खड़े
रहना सिखाती है। जिसमें श्रीगीता समा गयी
वह आस्था का प्रचार नहीं करता वरन् उसका व्यक्तित्व, व्यवहार और विचार उसके ज्ञानी होने का प्रमाण
देते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने संदेशों में साफ कहा है कि श्रीगीता का ज्ञान हमेशा उनके
भक्तों के बीच में ही दिया जाना चाहिये।
सार्वजनिक रूप से श्रीगीता का ज्ञान बघारना यही साबित करता है कि वक्ता
उसका अनुसरण नहीं कर रहा है।
हमारे यहां अक्सर कहा जाता है कि दूसरे की धार्मिक आस्था पर सवाल नहीं
उठाना चाहिये। श्रीमद्भागवत गीता का पाठक कभी भी यह काम नहीं करेगा क्योंकि उसे यह
समझाने या सिखाने की जरूरत नहीं है कि भक्त और भक्ति के प्रकारों के अनुसार चार
प्रकृत्ति के लोग इस विश्व में निवास करेंगे। सच बात तो यह कि श्रीगीता विश्व का
अकेला ऐसा ग्रंथ है जिसमें ज्ञान तथा विज्ञान के सिद्धांत एक साथ मौजूद हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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