सार्वजनिक जीवन में मानवीय संवेदनाओं से खिलवाड़ कर सदैव लाभ उठाना खतरनाक भी हो सकता है। खासतौर
से आज जब अंतर्जाल पर सामाजिक जनसंपर्क तथा प्रचार की सुविधा उपलब्ध है। अभी तक
भारत के विभिन्न पेशेवर बुद्धिजीवियों ने संगठित प्रचार माध्यमों में अपने लिये
खूब मलाई काटी पर अब उनके लिये परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं-यही कारण है कि
बुद्धिजीवियों का एक विशेष वर्ग अंतर्जालीय जनसंपर्क तथा प्रचार पर नियंत्रण की
बात करने लगा है।
1993 में मुंबई में हुए धारावाहिक बम विस्फोटों का पंजाब के गुरदासपुर में हाल
ही में हमले से सिवाय इसके कोई प्रत्यक्ष कोई संबंध नहीं है कि दोनों घटनायें
पाकिस्तान से प्रायोजित है। बमविस्फोटों
के सिलसिले में एक आरोपी को फांसी होने वाली है जिस पर कुछ बुद्धिमान लोगों ने
वैसे ही प्रयास शुरु किये जैसे पहले भी करते रहे हैं। इधर उधर अपीलों में करीब तीन
सौ से ज्यादा लोगों ने हस्ताक्षर किये-मानवीय आधार बताया गया। इसका कुछ सख्त लोगों
ने विरोध किया। अंतर्जाल पर इनके विरुद्ध अभियान चलने लगा। इसी दौरान पंजाब के
गुरदासपुर में हमला होने के बाद पूरे देश में गुस्सा फैला जो अंतर्जाल पर दिख रहा
है। लगे हाथों सख्त मिजाज लोगों ने इन हस्ताक्षरकर्ता बुद्धिजीवियों पर उससे
ज्यादा भड़ास निकाली। जिन शब्दों का उपयोग
हुआ वह हम लिख भी नहीं सकते। हमारे हिसाब से स्थिति तो यह बन गयी है कि इन
हस्ताक्षरकर्ता बुद्धिजीवियों के हृदय भी अब यह सोचकर कांप रहे होंगे कि गुरदासपुर
की घटना के बाद आतंकवाद पर उनका परंपरागत ढुलमुल रवैया जनमानस में स्वयं की खलनायक
छवि स्थाई न बना दे।
हमने पिछले दो दिनों से ट्विटर और फेसबुक पर देखा है। यकीनन यह लोग अभी तक अंतर्जालीय मंच को निम्न
कोटि का समझते हैं शायद परवाह न करें पर कालांतर में उनको यह अनुभव हो जायेगा कि
संगठित प्रचार माध्यमों से ज्यादा यह साामाजिक जनसंपर्क और प्रचार माध्यम ज्यादा
शक्तिशाली है। सबसे बड़ी बात यह कि आम जनमानस के प्रति उपेक्षा का रवैया अपनाने
वाले इन लोगों का इस बात का अहसास धीरे धीरे तब होने लगेगा उनके जानने वाले तकनीक
लोग उन्हें अपनी छवि के बारे में बतायेंगे।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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