हमारे देश के निजी हिन्दी टीवी समाचार चैनल अभी प्रसारण के उच्च स्तर से
बहुत दूर हैं। बहुत समय से सोचते रहे हैं कि हिन्दी टीवी समाचार चैनलों पर अपनी
राय रखें पर लगता नहीं है कि पहले तो सही जगह बात पहुंचेगी दूसरा यह कि इसका कोई
प्रभाव पड़ेगा। वैसे भी हम जैसे असंगठित लेखकों के पढ़ने वाले लोग अधिक नहीं होते
हैं। बहरहाल भारत के जितने भी राष्ट्रीय
हिन्दी समाचार चैनल हैं उनमें शायद ही कोई अब लोकप्रियता की दौड़ में है। इन चैनलों के पास समाचारों के लिये क्रिकेट, पाकिस्तान की सीमा पर
गोलीबारी और चीन के ड्रोन के अलावा अगर कोई चौथी सनसनीखेज खबर होती है तो वह
भारतीय समाज में कथित साप्रदायिक तनाव को इंगित करती है। इस मुद्दे पर किसी का एक
कोने में दिया गया बयान पहले पूरे देश में जबरदस्ती सुनाकर फिर उस पर बहस करते हैं।
इन चैनलों के प्रबंधकों का यह पता होना चाहिये कि मनोरंजन के लिये बहुत
सारे चैनल है। कुछ प्रादेशिक चैनल इन
राष्ट्रीय चैनलों से बेहतर समाचार प्रसारण कर रहे हैं। इन चैनलों की सबसे बुरी
प्रवृत्ति यह दिखाई दे रही है कि यह न्यायपालिका पर अप्रत्यक्ष हमला करते हैं।
इतना ही नहीं सरकार की कुछ अपराधियों के विरुद्ध की गयी कार्यवाही में भी मीनमेख
निकालने का प्रयास करते हैं-यह जानते हुए भी कि अंततः न्यायपालिका के बिना यहां
किसी को सजा नहीं दी जा सकती। बहरहाल इन
राष्ट्रीय टीवी समाचार चैनलों को यह पता होना चाहिये कि दृनियां भर की खबर लेना भी
एक नशा है जिसे यह परोस नहीं पा रहे।
उन्होंने अपनी विषयों का इतना सीमित कर दिया है कि समाचारों के अनेक नशेड़ी भी अब इनसे विरक्त होने लगे हैं। सभी चैनल एक जैसे हैं और यह कोई नशेड़ी यह नहीं
बता सकता कि उसने कौनसा समाचार किस चैनल पर सुना था। बहसों पर तो कोई बात भी नहीं करता। इसमें दिये
गये तर्क इतने प्रायोजित होते हैं कि इसमें शामिल कथित विद्वानों से बेहतर सोच तो
समाचारों के नशेड़ी स्वयं अपने पास रखते हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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