प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के
राष्ट्रपति बराक ओबामा को महात्मा गांधी रचित श्रीगीता प्रदान की। हम जैसे योग तथा अध्यात्मिक साधकों के लिये
श्री नरेंद्र मोदी की अध्यात्म तथा योग के प्रति जो लगाव है वह अत्यंत रुचिकर विषय
है। इसका कारण यह है कि सामान्य जीवन
बिताने वाले साधक की अध्यात्मिक क्षमता पर अन्य लोग सहजता से विश्वास नहीं करते
क्योंकि बिना बड़ी भौतिक उपलब्धि के किसी को हमारा समाज ज्ञानी नहीं मानता। यह मानवीय गुण है वह शक्तिशाली, उच्च पदस्थ और धनिक के आचरण का सभी लोग अनुसरण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने मद्भागवत गीता में इस बात
का उल्लेख भी किया है कि श्रेष्ठ व्यक्ति का पूरा समाज अनुसरण करता है। उन्होंने
स्वयं ही महाभारत युद्ध में श्रीअर्जुन का सारथि बनना इसलिये भी स्वीकार किया ताकि
उन्हें शस्त्र भी न उठाना पड़े और कर्म से विमुख होने का आरोप भी न लगे। श्रीमोदी भी योग तथा अध्यात्मिक दर्शन में रुचि
रखने के बाद भी भारत का सर्वोच्च राजसी पद धारण किये हुए हैं इससे उनकी साधना से
मिली सिद्धि का परिणाम भी माना जा सकता है। यही कारण है कि आजकल पूरे विश्व में
भारतीय अध्यात्मिक दर्शन तथा योग साधना की चर्चा भी खूब हो रही है।
श्रीमोदी ने सत्ता संभालने के पद निंरतर सक्रियता दिखाई दी है। उन्होंने 2 अक्टुबर को महात्मा गांधी जयंती पर भारत में
स्वच्छता अभियान प्रारंभ करने की घोषणा करने के साथ ही संयुक्त राष्ट्रसंघ में योग
दिवस मनाने का प्रस्ताव देकर भारत के अध्यात्मिक प्रेमियों को जहां प्रसन्न किया
वहीं शेष विश्व को भी चकित कर दिया है।
जहां बाहरी स्वच्छता से देह की इंद्रियां सुख ग्रहण करती हैं वहीं योग से
अंदर भी ऐसी स्वच्छता का भाव पैदा होता है जिससे यही धरती स्वर्ग जैसी लगती
है। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार उनको
ज्ञानी भक्त प्रिय है। ज्ञानी भक्त की पहचान यह दी गयी है कि जो स्थिर, स्वच्छ तथा पवित्र
स्थान पर त्रिस्तरीय आसन बिछाकर प्राणायाम तथा ध्यान करे। इसका सीधा आशय यही है कि पहली स्वच्छता बाहर ही
होना चाहिये क्योंकि उसका प्रत्यक्ष संबंध देह से है। देह हमेशा ही प्रथमतः बाह्य वातावरण से
प्रभावित होती है। अगर वह वातावरण
सकारात्मक है तो फिर बुद्धि, मन और विचारों की स्वच्छता के लिये योग साधना सहजता से की जा सकती है। इस
तरह आंतरिक तथा बाह्य स्चच्छता जीवन में ऐसा आत्मविश्वास पैदा करती है कि मनुष्य
जिन संासरिक विषयों में बड़ी उपलब्धि पाने के लिये लालायित रहता है वह उसे सहजता से
प्राप्त कर लेता है। योग साधना के अभाव में
दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक रुगणता होने से जहां
मनुष्य एक साधक की अपेक्षा अधिक सांसरिक विषयों में उपलब्धि करने के लिय
उत्सुक रहता है वहीं शक्ति के अभाव में हारता भी जल्द है।
2 अक्टुबर 2014 महात्मा गांधी की जयंती का दिन पिछले अन्य वर्षों की अपेक्षा अधिक चर्चा
का विषय इसलिये ही बना है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी न केवल राजनीतिक विषय
बल्कि आर्थिक, सामाजिक तथा अध्यात्मिक विषयों में भी नये प्रकार का स्फूर्तिदायक संदेश दे
रहे हैं। हमारी तो यही कामना है कि वह सफल
हों। हम जैसे सामान्य, स्वतंत्र तथा मौलिक
विचार लेखकों की अपनी कोई महत्वांकाक्षा नही होती पर यह कामना तो होती है कि अपने
आसपास के लोग भी प्रसन्न रहे। योग साधना, गीता अध्ययन तथा
सात्विक कर्म से ही यह जीवन सहजता से जिया जा सकता है। हमारे ब्लॉग पाठकों की
संख्या अधिक नहीं है और न ही ऐसे संपर्क सूत्र है कि किसी प्रधानमंत्री तक अपनी
बात पहुंचा सके। इसलिये अपने पाठकों से ही
अपनी बात कहकर दिल खुश करते हैं। योग तथा
श्रीगीता पर किस भी व्यक्ति की सक्रियता हमें प्रसन्न करती है इसलिये ही यह लेख भी
लिखा है। हम आशा करते हैं कि प्रधानमंत्री अपने नियमित कर्म में सफल रहकर देश एक
नया अध्यात्मिक मार्ग का निर्माण करेंगंे।
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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