विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव से गर्मी का प्रभाव बढ़ रहा है। इससे
मनुष्य ही नहीं वरन् पक्षु पक्षियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखा जा सकता
है। सामान्य लोग प्रत्यक्ष दैहिक
दुप्प्रभाव देख सकते हैं मगर इस प्रदूषण से पैदा होने वाले अप्रत्यक्ष मानसिक तथा वैचारिक दोषों को केवल
मानसिक और सामाजिक विशेषज्ञ ही समझ पाते हैं। पर्यावरण प्रदूषण, आधुनिक साधनों का
दिनचर्या में निरंतर उपयोग तथा असंतुलित सामाजिक व्यवहार से लोगों की मनस्थिति
अत्यंत क्षीण होंती जा रही है।
भारतीय योग साधना का नियमित अभ्यास करने के बाद ही हम इस बात का अनुभव कर
सकते हैं कि एक सामान्य और योगाभ्यासी मनुष्य में क्या अंतर है? कुछ वर्ष पूर्व
योगाभ्यास प्रारंभ करने वाले एक योग साधक ने इस लेखक को बताया अनेक बार कुछ व्यक्ति कुछ बरसों के बाद मिले तो
उनके व्यवहार में अनेपक्षित परिवर्तन का अनुभव हुआ। पहले लगा कि यह उम्र या परिवार की वजह से हो
सकता है पर धीमे धीमे लगा कि कहीं न कहीं पर्यावरण प्रदूषण तथा अन्य कारण भी कि
उनके असंतुलित व्यवहार के लिये जिम्मेदार है।
पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
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कायेन्द्रियसिद्धिशुद्धिखयत्तपसः।
हिन्दी में भावार्थ-तप के प्रभाव से जब
विकार नष्ट होने के बाद प्राप्त शुद्धि से शरीर और इंद्रियों में सिद्धि प्राप्त
होती है।
हम यह नहीं कहते कि सभी लोग मानसिक रूप से मनोरोगी होते जा रहे हैं पर
सामाजिक तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात को मान रहे हैं कि समाज का एक बहुत बड़ा
वर्ग दैहिक रोगों का शिकार हो रहा है जिससे विकृत या बीमार मानसिकता का दायर बढ़ता
रहा है। भारतीय योग विधा का प्रभाव इसलिये
बढ़ रहा है क्योंकि पूरे विश्व के स्वास्थ्य विशेषज्ञ मान रहे हैं है कि इसके अलावा
कोई अन्य उपाय नहीं है। भारतीय योग साधना में आसन, प्राणायाम, धारण और ध्यान की ऐसी प्रक्रियायें हैं जिनमें
तपने से साधक में गुणत्मक परिवर्तन आते हैं।
इसके लिये हमारे देश में अनेक निष्काम योग शिक्षक हैं जिनसे प्रशिक्षण
प्राप्त किया सकता है। इस संबंध में भारतीय योग संस्थान के अनेक निशुल्क शिविर
चलते हैं जिनमें जाकर सीखा जा सकता है।
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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