पूरे विश्व में 21 जून को योग दिवस मनाया जा रहा है। इसका प्रचार देखकर
ऐसा लगता है कि योग साधना के दौरान किये जाने वाले आसन एक तरह से ऐसे व्यायाम हैं
जिनसे बीमारियों का इलाज हो जाता है। अनेक
लोग तो योग शिक्षकों के पास जाकर अपनी बीमारी बताते हुए दवा के रूप में आसन की
सलाह दवा के रूप में मांगते हैं। इस तरह
की प्रवृत्ति योग विज्ञान के प्रति
संकीर्ण सोच का परिचायक है जिससे उबरना होगा। हमारे योग दर्शन में न केवल देह वरन् मानसिक,
वैचारिक तथा आत्मिक शुद्धता की पहचान भी
बताई जाती है जिनसे जीवन आनंद मार्ग पर बढ़ता है।
पातञ्जलयोग प्रदीप में कहा गया है कि
-----------------------अनित्यशुचिदःखनात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या।।
हिन्दी में भावार्थ-अनित्य, अपवित्र, दुःख और जड़ में नित्यता, पवित्रता, सुख और आत्मभाव का ज्ञान अविद्या है।
आज भौतिकता से ऊबे लोग मानसिक शांति के लिये
कुछ नया ढूंढ रहे हैं। इसका लाभ उठाते हुए
व्यवसायिक योग प्रचारक योग को साधना की बजाय सांसरिक विषय बनाकर बेच रहे हैं। हाथ
पांव हिलाकर लोगों के मन में यह विश्वास पैदा किया जा रहा है कि वह योगी हो गये
हैं। पताञ्जलयोग प्रदीप के अनुसार योग न
केवल देह, मन और बुद्धि का ही
होता है वरन् दृष्टिकोण भी उसका एक हिस्सा है। किसी वस्तु, विषय या व्यक्ति की प्रकृृत्ति का अध्ययन कर उस पर
अपनी राय कायम करना चाहिये। बाह्य रूप सभी का एक जैसा है पर आंतरिक प्रकृत्तियां
भिन्न होती हैं। आचरण, विचार तथा
व्यवहार में मनुष्य की मूल प्रकृत्ति ही अपना रूप दिखाती है। अनेक बार बाहरी आवरण
के प्रभाव से हम किसी विषय, वस्तु
और व्यक्ति से जुड़ जाते हैं पर बाद में इसका पछतावा होता है। हमने देखा होगा कि
लोहे, लकड़ी और प्लास्टिक के रंग
बिरंगे सामान बहुत अच्छे लगते हैं पर उनका मूल रूप वैसा नहीं होता जैसा कि दिखता
है। अगर उनसे रंग उतर जाये या पानी, आग या हवा के प्रभाव से वह अपना रूप गंवा दें तब उन्हें देखने पर अज्ञान
की अनुभूति होती है। अनेक प्रकार के संबंध नियमित नहीं रहते पर हम
ऐसी आशा करते हैं। इस घूमते संसार चक्र में हमारी आत्मा ही हमारा साथी है यह सत्य
ज्ञान है शेष सब बिछड़ने वाले हैं। हम बिछड़ने वाले व्यक्तियों, छूटने वाले विषयों और नष्ट होने वाली वस्तुंओं
में मग्न होते हैं पर इस अज्ञान का पता योग चिंत्तन से ही चल सकता है। तब हमें
नित्य-अनित्य, सुख-दुःख और
जड़े-चेतन का आभास हो जाता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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