पुराने विकास के दौर में बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी हो गयी,
अब गिरने लगी हैं तो नये विनाश की कड़ी हो गयी।
कहें दीपक बापू नये विकास का कद तो बहुत ऊंचा होगा
विनाश का ख्याल नहीं उम्मीद अब पहले से बड़ी हो गयी।
----------
विकास को दौर पहले भी चलते रहे हैं,
चिराग अपना रंग बदलकर हमेशा जलते रहे हैं।
कहें दीपक बापू आम आदमी महंगाई के बाज़ार में खड़ा रहा
उसका भला चाहने वाले दलाल महलों में पलते रहे हैं।
एक बात तय है कि आज जो बना है कल ढह जायेगा,
पत्थरों से प्रेम करने वाला हमेशा पछतायेगा,
बड़े बड़े बादशाह तख्त बेदखल हो गये,
चमकीले राजमहल देखते देखते खंडहर हो गये,
इतिहास में उगे बहुत लोग उगत सूरज की तरह
मगर समय के साथ सभी ढलते रहे हैं।
------------
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
No comments:
Post a Comment