तपते सूरज की आग बरसाती किरणें
इंसानों के शरीर से निकलता पसीना
पानी के लिये भटकते पशु पक्षी
कोई मौन होकर सह रहा है
कोईै हाहाकर दर्द कह रहा है
सूखे तालाब गर्म हवाओं के थपेड़े सहते पेड़
दूर विराजमान समंदर
मौसम के गुणा भाग में व्यस्त है
बादलों को नहीं सौंप रहा हवाओं के हाथ
क्योंकि वह धरती पर बने कैलेंडर नहीं
देखता
इंतजार करता है वह भी
सूरज के इशारे का
जो थक थक जायेगा आग बरसाते
फिर धरती पर अपनी कोमल दृष्टि डालेगा
तब अपनी उंगली उठायेगा।
--------
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
No comments:
Post a Comment