अपनी हालातों से लाचार लोग दूसरों की ताकते हैं,
दौलत के पहाड़ पर बैठे लोग उसकी केवल ऊंचाई नापते हैं।
कहें दीपक बापू फैशन के नाम पर लोग कर रहे
अपनी जिंदगी से खिलवाड़
रौशनी के लिये लगा लेते अपने ही घर में आग
वह रोते है मगरं तमाशाबीन उस पर
हाथ तापते हैं।
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कन्या भ्रुण हत्या करते हुए थका नहीं समाज,
वर के लिये वधुओं के आयात की बात हो रही आज,
कहें दीपक बापू लोग अपनी पुरानी
सोच को
आधुनिक विज्ञान के साथ ढो रहे हैं,
बेजुबान पशु पक्षी की तरह जीना मंजूर कर लिया
मनुष्य शरीर है पर अक्ल खो रहे हैं,
अब बारी आ रही है जब नस्ल पर ही गिरेगी गाज।
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तख्त पर जो बैठ जाये वही बुद्धिमान कहलाता है,
खामोश भीड़ सामने बैठती वह रास्ता बतलाता है।
कहें दीपक बापू कुदरत का नियम है बड़ो के बोले भी बड़े
छोटा वही ज्ञानी है जो अपने घाव खुद ही सहलाता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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