दौलत के भंडार है उनके घर
पर जिस्म में ताकतवर जान नहीं है,
महापुरुषों की
तस्वीरों पर
चढ़ाते हैं दिखावे के लिये माला
पर दिल में उनके लिये मान नहीं है,
सारे जहान में फैला है पाखंड
दिखना चाहते हैं शानदार वह लोग
जिनकी आंखों में किसी की शान नहीं है।
कहें दीपक बापू
मजदूर ने तराशा जिस पत्थर को
अपनी पसीने से तराशा
बन गया भगवान,
पड़ा रहा जो रास्ते पर
बना रहा दुनियां में अनजान,
जिनके पेट भरे हैं
उनकी चिंता सभी करते हैं
परिश्रम करने वालों को पूरी रोटी मिले
इससे आंखें फेरते है
स्वर्ग की चिंता में जिंदगी
दाव पर लगाते हैं लोग
जिसका किसी को ज्ञान नहीं है,
दिवंगतों की तस्वीर के आगे सिर झुकाते लोग
शोकाकुल सुरत से श्रद्धा निभाते
भले ही उनकी बनती
शान नहीं है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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