इस जहान में आधे से ज्यादा लोग
चिकित्सक हो गये हैं,
अपनी बीमारियों की दवायें खाते खाते
इतना अभ्यास कर लिया है कि
वह बीमारी और दवा के बीच
अपना अस्तित्व खो रहे हैं,
बताते हैं दूसरों को दवा
भले कभी खुद ठीक न हो रहे हों।
भले कभी खुद ठीक न हो रहे हों।
कहें दीपक बापू
अपनी छींक आते ही हम
रुमाल लगा लेते हैं
इस भय से कि कोई देखकर
दुःखी हो जायेगा,
बड़ी बीमारी का भय दिखाकर
बड़े चिकित्सक का रास्ता बतायेगा,
सत्संग में भी सत्य पर कम
मधुमेह पर चर्चा ज्यादा होती है,
सर्वशक्तिमान से ज्यादा
दवाओं पर
बात होती है,
कितनी बीमारियां
कितनी दवायें
बीमार समाज देखकर लगता है
छिपकर खुशी की सांस ली जाये,
लाचार शरीर में लोग
ऊबा हुआ मन ढो रहे हैं,
बीमार खुश है अपनी बीमारी और दवाओं पर
भीड़ में सत्संग कर
यह सोचते हुए कि
वह स्वास्थ्य का बीज बो रहे हैं।
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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