क्यों उम्मीद करते हो उन लोगों से
जो हुकूमत का पहाड़ चढ़ने के लिए
तुमसे पाँव उधार मांगने आते हैं,
बताओ ज़रा यह कि
जिनके सिर आसमान में टंगे हैं
चमकते सितारों की तरह
उनकी आँखों को नीचे के बदसूरत नज़ारे
कब नज़र आते हैं।
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जब से सीखा है
कौवे से किसी दूसरे पर
कभी भरोसा न करना
ज़िंदगी अपने अमन और चैन रहने लगा है,
हो गया है इस बात का अहसास कि
वफा बाज़ार में बिकने वाली शय है
यहाँ हर कोई मतलब का सगा है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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