Sunday, July 15, 2007

हम तो ढाई आखर की लिखेंगे

कहते हैं रवि भैया
ढाई सौ अक्षर तो
कम से कम जरूर लिखो
नहीं तो पाठकों की दृष्टि में
एकदम गिर जायेंगे
एक बार पढेंगे पाठक फिर
नहीं झाँकने भी आएंगे


हम तब से हैरान हैं
बहुत परेशान है
हम तो आये थे
ढाई आखर प्रेम के लिखने
यह ढाई सौ का पहाड़
कहाँ चढ़ पायेंगे
ऐसे तो हमेशा फ्लापों की
जमात में ही बैठे रह जायेंगे


हम इसके लिए भी तैयार
पर क्या गफलत से
बने हैं जो हिट उनके चेले
इसे समझ पायेंगे
अभी तक ढाई बार
लिखते थे हिट शब्द
चढ़ जाते थे शिखर पर
अब ढाई सौ बार चमकाएंगे
हिन्दी वालों से उनका वास्ता क्या
वह अंग्रेजों से हिट ले आएंगे

कहैं दीपक बापू हम तो
फ्लॉप के लिए भी तैयार
अपनी रचना को ढाई आखर में ही
सार्थक बना जायेंगे
ढाई सौ में तो
ग्रंथ का मर्म ही रचा जायेंगे
अपनी मातृभाषा के लिए
अंगरेजी के घर की घंटी
कभी नहीं बजायेंगे
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