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हद होती शर्म की
बेशरमी हमेशा बेहद होती है।
याचक खड़ा द्वार पर
हाथ फैलाये
वाणी उसकी कातर
शब्द के पद ढोती है।
कहें दीपकबापू सेवक से
तब तक वफा की आशा करें
जब तक स्वामी न बना
फिर तो सोने की पालकी
उसमें मद बोती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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