मुखौट लगे चेहरे
पहचाने नहीं जाते।
‘दीपकबापू’ सस्ते चरित्र
महंगा दाम लेकर भी
चैन नहीं पाते।
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काबिल इंसान
अपनी कामयाबी के
इश्तहार नहीं दिया करते।
दिल से ज़माने में
भलाई बांटने वाले
लफ्जो में बयान नहीं किया करते।
कहें दीपकबापू नाकाबिलों से
सज गये सिंहासन
नाकामी के ढूंढते बहाने
कमअक्ली जाहिर होने के डर में
सयानों से राय नहीं लिया करते।
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