पाकिस्तानी सेना ने दो भारतीय सैनिकों की बेरहमी से हत्या कर उनके सिर कलम कर दिये। इस घटना की भारत में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने का प्रयास व्यर्थ है तो कुछ मानते हैं कि इस घटना पर युद्ध जैसी खतरनाक कोशिश से बचना चाहिए। पाकिस्तान के साथ भारत के अनेक बार युद्ध हो चुका है पर कोई युद्ध कश्मीर समस्या के लिये निर्णायक नहीं हुआ। हैरानी की बात है कि युद्ध के बाद हुए समझौतों में पाकिस्तान को इस मुद्दे से हटने का दबाव क्यों नहीं डाला गया? पाकिस्तान हर युद्ध में हारा है पर फिर भी कश्मीर का मुद्दा नहीं छोड़ता। यह बात संशय पैदा करने वाली है।
दरअसल भारत में रणनीतिकारों का एक शक्तिशाली वर्ग मानता है कि पाकिस्तान का अस्तित्व बना रहे यह भारत के हित में है और कश्मीर मुद्दा छोड़ने से वह खत्म हो जायेगा। लगता है इसी कारण उसे भारत के प्रति नफरत बनाये रखने के लिये यह मुद्दा उसके पास बने रहने दिया गया। ऐसा लगता है कि भारत में अनेक बुद्धिमानों के एक समूह को पाकिस्तान के लोगों के बारे में जानकारी नहीं है। वहां भारत और यहां के धर्मों के प्रति वहां भारी वैमनस्य है। मुख्य बात यह है कि वहां की र्शैक्षणिक किताबों में भारत तथा यहां पैदा हुए धर्मों के प्रति अनादर वाली सामग्री है। भारतीय रणनीतिकार शुतुरमुर्ग की तरह यह राग अलापते हैं कि भारत का विभाजन धर्म की वजह से नहीं हुआ पर पाकिस्तान की अवाम में यह बात अब पैठ कर गयी है कि धर्म ही विभाजन का कारण है। हम समझते हैं कि वह हमें राष्ट्र की तरह ललकार रहे हैं जबकि वह अपनी धार्मिक पहचान के साथ हम पर हमला करते हैं। वह कश्मीर पर अपना दावा भौगोलिक परिस्थितियों के कारण नहीं वरन् अपने धर्म के कारण करते हैं।
पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों,कलाकारों और शायरों का भारत निरंतर आने से अपेक्षा करना मूर्खतापूर्ण है कि उससे कोई स्थाई मित्रता बनेगी। वैसे पाकिस्तान एक सार्वभौमिक राष्ट्र है यह कभी अनेक लोगों को नहीं लगता है । हम भारत में रह रहे पाकिस्तान के सहधर्मियों को देखकर वहां के लोगों की मनस्थिति का अनुमान करते है जो कि गलत है। वहां सिंध, बलुचिस्तान और पश्चिमी प्रांत के लोग यह मानते हैं कि पंजाब के लोगों ने उन पर कब्जा कर रखा है। खासतौर से सिंध में तो पाकिस्तान के प्रति अत्यंत नाखुशी का भाव है। इसका कारण यह है कि सारे पाकिस्तान में वहां के पंजाब प्रांत के लोगों ने ही दबदबा बनाये रखा है। क्रिकेट से लेकर फिल्म तक उनका ही वर्चस्व है। इतना ही नहीं पाकिस्तान की अनेक फिल्मों में सन्यासियों को खलपात्र के रूप में चित्रित किया गया। यही कारण है कि पाकिस्तान में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू या तो पलायन कर गये या फिर धर्म बदलने के लिये बाध्य हुए। वहां अक्सर मंदिरों पर हमले होते रहते हैं। इतना ही नहीं पुराने हिन्दू प्रतीकों को लगभग मिटा दिया गया है। हालांकि वहां कुछ मंदिरों के पुनरोद्धार की बात की जाती है पर वह भारत से पर्यटकों को लुभाने का प्रयास लगता है। इससे यह नहीं समझना चाहिये कि पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं को कोई सम्मान मिलने वाला है। पाकिस्तान आज विश्व में अपनी पहचान बना चुका है पर यह सफलता उसे धार्मिक उन्माद में योगदान की वजह से मिली है। कहने का अभिप्राय यह है कि हम भले ही अपनी अक्ल के पर्दे बंद किये रहें पर पाकिस्तानी अपनी धार्मिक पहचान को श्रेष्ठ मानते हैं और अन्य धर्म उनकी दृष्टि में कमतर हैं। किसी भारतीय-चाहे वह किसी भी धर्म का हो-का मरना उनकी नज़र में कोई महत्व नहीं रखता क्योंकि वह उनके सहधर्मी राष्ट्र का नहीं है। यह अंतिम सत्य है और अगर कोई मुगालते हैं तो उसे समझाना कठिन है।
भारत के लिये पाकिस्तान को निपटाना कोई कठिन काम नहीं है। भारतीय सेना एक व्यवसायिक सेना है जबकि पाकिस्तान की सेना अब धर्मांध होकर ऐसी राह पर चल पड़ी है जहां अब सिवाय आंतक फैलाने के उसके पास कोई मार्ग नहीं है। यह सच है कि युद्ध में बहुत हानि होती है पर इतिहास गवाह है कि अपना प्रभाव बनाये रखने के लिये अंततः ताकतवर लोगों को युद्ध करने ही पड़ते हैं। मनुष्य हमेशा ही योगी बनकर ध्यान में नहीं लगा रह सकता। कभी कभी उसे योद्धा बनकर लड़ना भी पड़ता है। इस संसार में दैवीय तथा आसुरी दो प्रकृति के लोग होते हैं। देवताओं केा अनेक बार असुरों से युद्ध करना पड़ा है। पाकिस्तान और उसके सहयोगी देश आसुरी प्रवृत्ति के हैं और उनसे यह अपेक्षा करना निरर्थक है कि वह दैवीय प्रकृति के लोगों को आराम से रहने देंगे। हम यहां रावण का उल्लेख भी करना चाहेंगे जिसका तत्कालीन सभ्यता में उन लोगों से बैर था जो उसकी निज धार्मिक पंरपरा से प्रथक थे। वह ऋषि, मुनियों और तपस्वियों का इसलिये बैरी था क्योंकि वह उसकी धार्मिक पंरपरा मानने वाले नहीं थे। सच बात तो यह है कि रावण सीता हरण अगर वह नहीं भी करता तो भी उसका भगवान श्रीराम के साथ युद्ध अवश्यंभावी था क्योंकि वह उन्हीं ऋषि, मुनियों, तपस्वियों की रक्षा के लिये प्रयासरत थे।
हमारा मानना है कि प्रत्यक्ष रूप से युद्ध न भी करें तो अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को तोड़ देना चाहिये। भारत के प्रति नफरत वहां पंजाब प्रांत के वर्चस्व के कारण ही फैली है क्योंकि वही अपना प्रभाव बनाये रखना चाहते हैं। पाकिस्तान मध्य एशिया के देशों के सहारे धर्म के नाम पर एक रखे हुए है और एक बार वहां क्षेत्रीयता को बढ़ावा मिला तो ऐसा संकट बढ़ेगा कि पाकिस्तान मिट जायेगा। वहां के शिखर पुरुष यह कहते हैं कि हम स्वयं ही आतंकवाद की चपेट में है पर यह दिखावा है। वैसे भी इस तरह का छुटपुट आतंकवाद पाकिस्तान को मिटा नहीं पायेगा। एक बार पाकिस्तान की सेना ध्वस्त हो गयी तो पाकिस्तान मिट जायेगा। कुछ लोगों को मानना है क भारत को अगर अमन चैन से रहना है तो उसे हर हालत में पाकिस्तान को मिटाना ही होगा।
यह भी न करना है तो पाकिस्तान से अब बेहतर संबंधों के लिये यह भी शर्त रखनी होगी कि वह अपनी शैक्षणिक किताबों से भारत तथा यहां के धर्मों के विरुद्ध अनादर वाली सामग्री हटाये। अगर वह ऐसा नहीं करता तो उससे राजनीतिक संबंध भी खत्म करना चहिये। यह एक तरह का सभ्य प्रयास है और आसुरी प्रवृत्ति से युक्त पाकिस्तान इसे मानेगा यह कठिन है पर जब हमारे रणनीतिकार यह मानते हैं कि हम उससे ज्यादा ताकतवर है तो दबाव काम आ सकता है। हालांकि यह कदम भी पाकिस्तान के लिये आत्मघाती होगा क्योंकि भारत के प्रति नफरत के बाद उसे वैसे ही संकट का सामना करना पड़ेगा जो कश्मीर मुद्दा छोड़ने पर हो सकता है। इसके लिये मानसिक दृढ़ता का परिचय देना होगा।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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