Wednesday, February 9, 2011

रंग बदलती दुनियां-हिन्दी व्यंग्य शायरी (rang badalti duniya-hindi vyangya shayari)

सामानों के पीछे दौड़ते रहे
मगर सब जेब से महंगे हो गये,
जिन लोगों की नीयत पर शक नहंी था
वह सस्ते बिक कर नंगे हो गये।
कमबख्त,
इस रंग बदलती दुनियां के
नज़ारे कुछ हमने ऐसे देखे कि
जिसे चाहा अपना हुआ नहीं,
अपना होकर भी गैर बनकर साथ रहा यहीं,
स्वच्छ छवि
सम्मानीय व्यक्तित्व का स्वामी
और सफेद ख्याल का जिसे माना
वही डालर, पौंड और दीनार की खातिर
कोयले की दलाली करते
काले रंग से रंगे हो गये।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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