अमर शब्द-हिन्दी कविता
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मरना मारना
सदियों से चल रहा है
शिकारी के घर चिराग
शिकार के खून से ही
जल रहा है।
कहें दीपकबापू जीवन में
किसी के जन्म पर जश्न कैसा
मरने पर सियापा कैसा
वही कवि हुए अमर
जिनका शब्द
राम नाम के साथ
अब भी मचल रहा है।
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लोकतंत्र में सेवक स्वामी-हिन्दी व्यंग्य कविता
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लोकतंत्र के पर्दे पर कलाकार
कभी नायक
कभी खलनायक की
भूमिका निभाते हैं।
कभी परस्पर मित्र
कभी शत्रुता निभाते हैं।
कहें दीपकबापू यह खेल है
पैसा फैंकने वाले
बन जाते निदेशक
लेने वाले इशारा मिलते ही
कभी सेवक
कभी स्वामी की भूमिका निभाते हैं।
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