गर्मी में सूखी नदी
बरसात के पानी से लबालब होकर
शोर के साथ उफनती आती है।
बैठे ठाले आदमी करता
आदर्श की बात शांत आवाज में
जेब में भर जाता पैसा
उसकी जुबान अहंकार
शब्दों का शोर मचाती है।
बेईमानी का मौका ने मिले
आदमी ईमानदारी का बोझ ढोता
मुद्रा की महक सूंघते ही
नीयत बाहर आ जाती है।
कहें दीपक बापू देखी तस्वीरें
हमेशा हमने सामने से
पीछे नज़र कभी नहीं जाती है,
दिखाते हैं लोग सामने
हंसता हुआ चेहरा
चालाकियों की भनक
फिर कहां नज़र आती है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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