ज़माने को दिखाने के लिये
नये नये स्वांग रचना होता है जरूरी,
नारे लगाते रहो भीड़ में
तख्त पर बैठते ही बना लो वादों से दूरी।
कहें दीपक बापू
नयी नयी अदायें दिखाओ,
पुराने शब्दों की पंक्तियां
नई कहकर सिखाओ,
मुखौटा बदलकर
नया चेहरा दिखाओ,
दौलत चाहे जितनी हो पास
गरीब के बने रहो हमदर्द,
दिल में चाहे अपने सुंदर सपने बसे हो
बेचो बाज़ार में दूसरों का दर्द,
ऊंचाई पर महल भले ही बना लो,
रहने के लिये जमीन पर झौंपड़ी भी तना लो,
दूसरों को आसरे देते रहो
ख्वाहिशें अपनी करते रहो यूं ही पूरी।
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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