Thursday, September 9, 2010

जिंदगी का हिसाब-हिन्दी शायरी (zindgi ka hisab-hindi shayari)

अवसाद के क्षण भी बीत जाते हैं,
जब मन में उठती हैं खुशी की लहरें
तब भी वह पल कहां ठहर पाते हैं,
अफसोस रहता है कि
नहीं संजो कर रख पाये
अपने गुजरे हुए वक्त के सभी दृश्य
अपनी आंखों में
हर पल नये चेहरे और हालत
सामने आते हैं,
छोटी सी यह जिंदगी
याद्दाश्त के आगे बड़ी लगती है
कितनी बार हारे, कितनी बार जीते
इसका पूरा हिसाब कहां रख पाते हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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2 comments:

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत अच्छी कविता...

http://veenakesur.blogspot.com/

गजेन्द्र सिंह said...

अच्छी पंक्तिया लिखी है .....

हमें भी पढ़े :-
( खुद को रम और भगवन को भांग धतुरा ....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_09.html

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