सुबह जब एक अभिनेता देश में कथित असहिष्णु वातावरण होने का बयान टीवी पर सुना तब घर से जाते समय हमने उसके
लिये दुआ की थी-‘हे सर्वशक्तिमान! टीवी चैनल, ट्विटर और फेसबुक पर उस कम से कम शाब्दिक हमलें हों?
मालुम था कि हमारी दुआ काम
नहीं आयेगी। जब आप आत्ममुग्ध होकर इस सोच के साथ बोलते हैं कि आप इतने प्रभावी हैं
कि आपकी जाति, भाषा तथा धर्म के कारण कोई चुनौती नहीं दे सकता तब इस बात पर भी विचार करना
चाहिये कि आपकी सार्वजनिक छवि कैसी है? बरसों तक अपने अभिनय से लोगों के हृदय को बहलाने के बाद अचानक जब स्वयं के धर्म
का नाम छाती फुलाकर बताते हैं तो यकीन मानिये की आप अपनी ही छवि ध्वस्त करने वाले हैं।
उस अभिनेता के बयान का समर्थन या विरोध करने
से अलग महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने अपने लाखों प्रशंसक एक साथ खो दिये।
हमने आज अनेक ऐसे लोगों
को उस अभिनेता पर नाराज होते देखा जो उनके प्रशंसक है। लगता है एक दिन में उन्होंने
लाखों प्रशंसक खो दिये। व्यवसायिक दृष्टि से यह ऐसी साख खोना है जिसे दोबारा वापस पाना
अत्यंत कठिन होता है।
अपने चंद शब्दों से स्वयं
की जीवन भर के प्रयासों से बनी स्वयं की छवि धूमिल की जा सकती है- एक अध्यात्मिक साधक
की बात कौन समझ पायेगा। अपने शब्दों की अभिव्यक्ति से अपनी बरसों पुरानी छवि का सत्यानाश
कुछ लोग कर ही देते हैं-साधक के अनुसार आत्ममुग्धता डर पैदा करती है। अध्यात्मिक चिंत्तक
मानते हैं कि मनुष्य सबसे ज्यादा भयभीत तब होता है जब उसे अपना भांडा चौराहे पर फूटने
की शंका लगती है।
जब हम धर्म से आतंकवाद न
जोड़ने की बात कहें तो राज्यप्रबंध भी उससे अलग रखने के लिये सभी देशो से कहना चाहिये।
जिन देशों का राज्यप्रबंध धर्म पर आधारित हैं वहां मानवीय सिद्धांत तथा प्राकृतिक न्याय
के सिद्धांतों का पालन नहीं होता। भारत धर्म आधारित राज्य प्रबंध देशों से साफ कहे
कि वह अपने यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी का वातावरण बनायें ताकि वहां जनमानस आतंकवाद की
तरफ आकर्षित न हो।
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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