जिस तरह अरब देशों में उथलपुथल हो रही है उससे वहां के जनसमुदाय में अन्य
देशों की तरफ पलायन बढ़ रहा है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक रूप से आर्थिक रूप से
संपन्न अरब देश अपने आसपास के देशों से भयभीत होकर वहां आतंकवाद को प्रश्रम दे रहे
हैं। यमन में तो सऊदी अरब शिया मुसलमानों
का वर्चस्व रोकने के लिये खुल्लखुल्ला लगा हुआ है। सामान्य तौर से कहा जा रहा है कि अरब क्षेत्र
में आईएसआईएस के आतंकवादी अभियान के कारणं तनाव है। यह मान लेते हैं पर आईएसआईएस
के खैरख्वाह कौन हैं यह बात छिपा दी जाती है।
आईएसआईएस को समर्थन उन अरब देशों से मिल रहा है जो अपनी बढ़ती आबादी पर
नियंत्रण नहीं कर पाये तो अपने यहां की युवाशक्ति को आतंकवाद बनाकर पड़ौसी देशों की
तरफ ढकेल रहे हैं। वहां से पलायन होकर लोग
यूरोप जा रहे हैं। यह संदेह होता है कि
अरब देश अपने धर्म के विस्तार की
कोई योजना पर काम कर रहे हैं। यूरोप के
लोग इससे परेशान होकर शरणार्थियों को रोकना चाहते हैं पर उनकी मौतों के फोटो देखकर
अब दरियादिली दिखाना चाहते हैं।
सभी जानते है कि अरबी लोग अपना मूल धर्म कभी नहीं छोड़ सकते। यूरोप, इंग्लैंड या अमेरिका
जाकर भी वह अपनी पूजा पद्धति के साथ वैसा रहन सहन भी रखना चाहते हैं जैसे अरब देश
में होता है। एक बात निश्चित है कि अरब
देशों की अधिकृत सरकारों के समर्थन के बिना आईएकआईएस इतना आगे नहीं आ सकता। महत्वपूर्ण बात यह कि विश्व के आधुनिकीकरण से
अरब देशों का धर्म नफरत करता है। अमीर शेख
भले ही आधुनिक साधन उपयोग करें पर वह अपनी जनता को पशुओं से अधिक नहीं समझते। अपने यहां जनविद्रोह की आशंकों में जीते यह लोग
अपने लोग दूसरी जगह आतंकवादी और दूसरी जगह से शरणार्थी के रूप में तीसरी जगह भेजने
की योजना बना सकते हैं। ताकि उनकी धार्मिक तिलिस्म बना रहे। विश्व में रणनीतिकारों
को इस पर ध्यान देना चाहिये।
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